Book Title: Swarshastra
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 31
________________ ( ३१ ) नाडीओ पोताना शरीरमांज वहे छे, तेना उपर मनुष्ये पूर्ण अय मेळवयो जोइए. तेना उपर जय भेळवनार युवान् बने छे... ज्यारे म्हो, नाक, आंख, कान वगेरे आंगळीओथी दाबवामां आवे छे, त्यारे आंख आगळ तत्वो देखावा मांडे छे. __जे ते तस्वोनां रंग, गति, स्वाद, स्थान अने चिन्ह समजे छे, ते आ दुनियामां रुद्र जेवो शक्तिमान् थाय छे. जे आ बधुं जाणे छे, अने निरंतर तेनो अभ्यास करे छे, ते सघळां दुःखथी मुक्त थाय छे, अने इच्छित वस्तु प्राप्त करे छे. . जेना मगजमा स्वानुं ज्ञान छे, तेना पग नीचे नीधि आवीने रहे छे. जगतमा सूर्यनी मारफते आ ज्ञानने जाणनार वंदनीय छे. " जे स्वरशास्त्रनुं अने तत्वोनुं ज्ञान मेळवे छे, तेनी- साथे हजारो अमृतनी शीशीओ पण सरखावी शकाय नहि.. जे माणस तमने आ बाबतनुं अने ओंकारनुं ज्ञान आपे तेना देवामांथी, गमे तेटलो बदलो वाळो.छतां, मुक्त थइ शको नहि. __ पोताना स्थानमां बेसीने, नियमित खोराक अने उंघ लेइने, योगीए आत्मा के जेतुं प्रतिबिंब स्वर छे, ते उपर ध्यान करवं. तेवो मनुष्य जे बोले छे, ते प्रमाणे जरुर थाय छे.. GAVA । .. ... शुभमभयात् । Scanned by CamScanner

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