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महावीर के समवशरण में पधारने की सूचना दी। यह समाचार सुनकर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने वनपाल को वस्त्राभूषण दान कर वीर-प्रभु को परोक्ष नमस्कार किया तथा चेलना के साथ समवशरण में पहुँचा। वहाँ स्तुति-वन्दन के बाद मानव-सभा में बैठ गया और वीर प्रभु से सिद्धचक्र की विधि एवं उसके फल का माहात्म्य पूछा। उत्तरस्वरूप गौतम गणधर ने श्रीपाल का कथानक निम्न प्रकार सुनाना प्रारम्भ किया।
मालव-देश की उज्जयिनी नगरी में राजा पहुपाल (पृथिवीपाल) अपनी विजयश्री नामकी रानी के साथ राज्य करता था। कालान्तर में उसकी दो पुत्रियाँ हुई, सुरसुन्दरी एवं मैनासुन्दरी। जब वे दोनों कन्याएँ बड़ी हुई, तब पहुपाल ने सुरसुन्दरी को शैव-गुरु के पास तथा मैनासुन्दरी के लिए जैनगुरु के पास विद्याध्ययनार्थ भेजा। दोनों पुत्रियों ने अपने-अपने गुरुओं के पास सर्वांगीण अध्ययन किया। सुरसुन्दरी वेद, पुराण, वैद्यक, कोकशास्त्र आदि पढ़कर वापिस अपने घर लौटी। ___ मैनासुन्दरी ने ‘णमोसिद्धं' से अपना अध्ययन प्रारम्भ किया तथा अल्पकाल में ही बारहभावना, अणुव्रत, महाव्रत, चरित, पुराण, गुणस्थान, मार्गणाएँ, काव्य, व्याकरण, अलंकार, विधिशास्त्र, ज्योतिष, नय, प्रमाण, भव्य-संगीत, नाट्यशास्त्र, तर्कशास्त्र, षड्दर्शन, रत्नपरीक्षा, अट्ठारह-लिपियाँ, सोलह-कारण-भावना, दशलक्षणधर्म, कर्मविपाक-सूत्र, रोगनिदान, औषधिशास्त्र, सामुद्रिक-शास्त्र, आदि का ज्ञान प्राप्त किया तथा अपने पिता के घर लौट आई। अपनी पुत्रियों को विदुषी के रूप में देखकर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ। (कड़वक 1-14, प्रथम-सन्धि)
एक दिन राजा पहुपाल सुखासन पर बैठा हुआ था कि अचानक ही दोनों पुत्रियाँ वहाँ आईं। राजा ने उनकी परीक्षा हेतु निम्न समस्या को सम्मुख रखकर सर्वप्रथम सुरसुन्दरी को उसकी पूर्ति हेतु आदेश दिया समस्या
पुण्णे लब्मइ एहु।। .................अर्थात् पुण्य से ही प्राप्त होता है। सुरसुन्दरी ने पिता के आदेश से उसकी पूर्ति निम्न प्रकार की समस्यापूर्ति
विज्जा-जोव्वण-रूव-धणु घरु-परियणु-कयणेहु । बल्लहजणमेल्लावउ पुण्णे लब्मइ एहु।। (2/1)