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बेटी की बिदा आदि के वर्णन-प्रसंग प्रस्तुत रचना में प्रस्तुत हैं। दहेज की प्रथा मध्यकाल में विशेष रूप से रही है। कवि के उल्लेख से विदित होता है कि पिता अपनी पुत्री के विवाह में दहेज स्वरूप हाथी, घोड़े, दासी, दास, सोना, चाँदी आदि श्रेष्ठ वस्तुएँ प्रदान किया करते थे।
आभूषणों में कवि ने मणिजटित शेखर, कुंडल, कंकण, मुद्रिका आदि का उल्लेख किया है। श्रीपाल ने दीक्षा लेते समय अपने महाग्रं वस्त्रों के साथ निम्न आभूषणों को उतार फेंका था
पुणु सेहरु मणिबद्धुत्तारिउ। णं कामहु अहिमाणु णिवारिउ।। कुंडल-कंकणाइ पुणु मुक्कइ। णं णखत्त सहहि णह चुक्कइ ।। मुद्दयाइँ उत्तारिवि इच्छहु। आसिय मुद्दा तेण णिग्गंथहु।। .
10/16/6-8 विषय वर्णन के प्रसंगों में कवि ने सूक्तियों, कहावतों एवं बहुमूल्य उपदेशों का अंकन भी किया है, जो बड़े मार्मिक हैं। उदाहरणार्थ कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत किए जाते हैं
सहसा अवियारउ किंपि कम्म। किज्जइ ण कहिज्जइ कासु मम्मु।। 3/10/1
अर्थात् सहसा ही अविचारित कोई कार्य न करना चाहिए और न किसी को उसका मर्म कहना चाहिए।
किं अमयवेलि घल्लहि हुयासि। तुसमोलें विक्किय रयणरासि।। 3/10/1
अर्थात् अमृतलता को अग्नि ज्वाला में क्यों झोंक रहा है? भूसे के मोल रत्नराशियाँ क्यों बेच रहा है?
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि ज्ञान, विज्ञान एवं मनोविज्ञान के विश्वकोश के समान उक्त अतिमहत्त्वपूर्ण दुर्लभ पाण्डुलिपि अद्यावधि अप्रकाशित है और उसके लिए प्रकाशक की व्यग्र प्रतीक्षा है।
1. सिरिवाल० 6/12, 7/5
2/8/2010
बी-5/40-सी, सैक्टर-34 धवलगिरी, नोएडा-201301 (यू०पी०)