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(10) निर्मलीकरण, रोमांस का आसव एवं संस्कृति के पीयूष का मंगलमय सम्मिलन, प्रेयस् और श्रेयस् का ग्रन्थिबन्ध और इन सबसे ऊपर त्याग एवं कषाय-निग्रह का निदर्शन समाहित है। इन सबके लिए उसका प्रस्तुत सिरिवालचरिउ सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
महाकवि रइधू का जन्म-स्थल अज्ञात है किन्तु उसकी ग्रन्थ-प्रशस्तियों से यही विदित होता है कि गोपाचल दुर्ग (वर्तमान ग्वालियर, म०प्र०) उसकी साहित्य-साधना का स्थल रहा था। वहाँ तोमरवंशी राजा डूंगरसिंह एवं उसके पुत्र राजा कीर्तिसिंह उसका बहुत ही आदर-सम्मान करते थे तथा उन्हीं के अनुरोध से गोपाचल-दुर्ग में रहकर ही रइधू ने लगभग 30 ग्रन्थों की रचना की। उनमें प्रयुक्त भाषाओं को देखकर यह स्पष्ट विदित होता है कि अपभ्रंश के साथ-साथ संस्कृत, प्राकृत एवं हिन्दी पर भी उसका पूर्ण अधिकार था। उसकी उपलब्ध रचनाएँ निम्न प्रकार हैं 1. तिसट्ठि-महापुराणपुरिसायारगुणालंकारु (अपरनाम महापुराण) 50 सन्धियाँ तथा
1531 कड़वक 2. पासणाहचरिउ (10 सन्धियाँ, 138 कड़वक)प्रकाशित 3. णेमिणाहचरिउ (अपरनाम हरिवंसपुराणु, 14 सन्धियाँ, 302 कड़वक) 4. सम्मइजिणचरिउ (10 सन्धियाँ, 245 कड़वकोप्रकाशित 5. मेहेसरचरिउ (13 सन्धियाँ, 304 कड़वक) 6. सिरिवालकहा (10 सन्धियाँ, 192 कड़वक) 7. बलहद्दचरिउ (अपरनाम पउमचरिउ, 12 सन्धियाँ, 254 कड़वक) 8. सुक्कोसलचरिउ (4 सन्धियाँ, 74 कड़वक)प्रकाशित 9. धण्णकुमारचरिउ (4 सन्धियाँ 74 कड़वक)प्रकाशित 10. जिमंधरचरिउ (अपरनाम सोलहकारणव्रत-विधान-काव्य, 13 सन्धियाँ, 301 कड़वक) 11. सम्मत्तगुणणिहाणकव्व (4 सन्धियाँ, 102 कड़वक) 12. वित्तसारो (प्राकृत-प्रकाशित) (7 अंक, 893 कथाएँ) 13. सिद्वंतत्थसारो (प्राकृत) (13 अंक, 1933 गाथाएँ) 14. जसहरचरिउ (सचित्र, त्रुटित, 4 सन्धियाँ, 104 कड़वक) 15. संतिणाहचरिउ (सचित्र, त्रुटित) 16. पुण्णासवकहा (14 सन्धियाँ 250 कड़वक)प्रकाशित
17. अणथमिउकहा (17 पद्य)प्रकाशित - 18. सोलहकारण भावणा (प्राकृत) 16 पद्य)प्रकाशित