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(8) सुभटों तथा 500 मालवाही-पोतों के स्वामी महासार्थवाह धवल सेठ से परिचय, अपनी जलतारिणी एवं विघ्न निवारिणी विद्याओं के प्रयोग से प्रभावित कर धवल सेठ का विश्वस्त मित्र बनकर उसके साथ समुद्री मार्ग से विदेश यात्रा, हंसद्वीप में प्रवेश, समुद्री लुटेरों के आक्रमण का सामना कर तथा उन पर विजय प्राप्त करते हुए उनका हंसद्वीप पहुँचना (पाँचवीं सन्धि )
हंसद्वीप की राजकुमारी रयणमंजूषा के साथ श्रीपाल का विवाह, रयणमंजूषा के सौन्दर्य से धवल सेठ की मोहासक्ति, धवल सेठ श्रीपाल को उफनते समुद्र में फेंककर रयणमंजूषा को आकर्षित करने का प्रयास करता है, किन्तु असफल रहता है।
रयणमंजूषा पति- विछोह में करुण - क्रन्दन करती रहती है। उसके शील- व्रत के चमत्कार से अनेक देवियाँ धूर्त धवल सेठ को कठोर सजा देती है अतः वह उससे क्षमायाचना है । (छठवीं सन्धि )
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श्रीपाल समुद्र में तैरकर कुंकुंमद्वीप पहुँचता है । वहाँ की राजकुमारी गुणमाला के साथ उसका विवाह और इधर वह धवल सेठ भी सदल बल कुंकुंमद्वीप में पहुँचता है और श्रीपाल को वहाँ जीवित देखकर दुखी हो जाता है । अपना अपराध छिपाने के लिए वह श्रीपाल को वहाँ के राजा के सम्मुख एक मातंगपुत्र घोषित करता है और एक धूर्त राज्य मन्त्री को एक लाख दीनारों (मुद्राएँ) की रिश्वत देकर उसके बनावटी माता - पिता एवं परिवार वालों को एकत्र कर देता है, किन्तु गुणमाला वास्तविकता का पता लगाकर धवल सेठ को राजा से कठोर दण्ड दिलाती है ।
वहाँ से आगे चलकर वह श्रीपाल मार्ग में चित्ररेखा एवं कंचनमाला के साथ विवाह करता हुआ, कोंकणपट्टन पहुँचता है । वहाँ के राजा यशराशि की 1600 पुत्रियाँ थीं, जिनमें से 8 पुत्रियाँ बड़ी विदुषी किन्तु अहंकारिणी थी । उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जो युवक उनके द्वारा प्रस्तुत समस्याओं की पूर्तियाँ करेगा, वे उसी के साथ अपना विवाह करेंगी । श्रीपाल ने बड़ी कुशलतापूर्वक उनकी समस्यापूर्ति की । अतः राजा यशराशि ने प्रमुदित होकर अपनी समस्त 1600 कन्याओं का विवाह श्रीपाल के साथ कर दिया ।
तत्पश्चात् कांचनपुर नरेश की 500, मुंडवादि देश के राजा की 700 कन्याओं, तिलंग देश के नरेश की 1000, सोरठ देश के राजा की 500 कन्याओं, गुजरात नरेश की 400 कन्याओं तथा मेवाड़ नरेश की 200 कन्याओं के साथ विवाह कर वह पल्लिराज खश, बब्बर तथा मालवा के शत्रुओं को पराजित करता हुआ उज्जयिनी पहुँचा । वहाँ अपनी माँ तथा पत्नी मैनासुन्दरी से भेंट की ।