Book Title: Sutrakritanga Churni
Author(s): 
Publisher: 

View full book text
Previous | Next

Page 229
________________ लिप्ठन्तुलाव एटा एवातुक्त आकण गोशालः पुनराह-अस्तुलाव जत्थ जल्य पाडवज्जति धम्म तत्थतत्थगमर्णकधणंच, -वाणयतुल्ली सी णासी पण्ण पहा वणिए उद्दयट्ठा आयस्स हेतुं पगरेलि संगी ततीवमे सनणणायपुत्त उच्चैव महीतिमती वियका // 19 // एवंण कुज्जा विपुणे पुराणंचेच्चाऽमति तातियमाऽऽहएवी एलावला बंभचैरं ति बुत्ते तस्सोदयट्ठी समणसि बीमिरा समारभवणिया भूतगारंपरिगहं चैव मनायमीणा ते णाति संजीगमभिगहाया मातम्स हेतुं पगति संग रह वित मिणो मेहुणसंपगादा, भोयण्टा वणियावयति। वयं तुकामेनु कमज्योववण्णा, अणारिया पेमरसेसुगिद्धा वारसा आरंभतं चैव परिगहंच,अवियोसिया णिस्सिय भातदंडा। लेसिचसे उदए जं क्यासी,चठरतणंताय दुहाय हारा जगंलणालिय ओदए से वयंति से दो वि अणी दयामि। से उदये सातिमणंतपत्ते,तमुदयं साहति णालितातीरहण

Loading...

Page Navigation
1 ... 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284