Book Title: Sutrakritanga Churni
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________________ -श्चि इत्यतो णालदा, बहिनगरस्य बाहिरिका जालन्दायां मवं णालंदइज्ज अन्न गाधा-.. लंदाए समीवे मनोरहे भासि इंदभूणा / ---- अज्झयण उदगस्स तु लेणं नालंदइज्जति 04 // णालेदाए समीवेना - -पासावच्चिजी पुच्छिताइओ अज्जगोतम उदगो। सावग पुच्छा धम्म सोतुं कहियम्मिउवसंतोपा०५॥ सालदइज्जणिज्नुत्तीसम्मत्ताासूया उस्स विइओसुयक्रबंधी सम्मत्तौसम्मतच सूयगडभिहाण विइयानगगानन्यतः श्लोक रहशाचा पासावच्चिज्जे पश्यतीति पार्थः तीर्थकरः, पासस्स अवच्चं पासावच्चं,नासौ पार्श्वस्वामिना प्रवाजितः किन्तु पारम्पर्येण पावपित्यस्थापत्यं पासावच्चिजन्स भगवंगोलनापासावच्चिज्जी पुच्छिताइओ अजगोमेलन उदओ जिधा-तुममा वा विरुद्धं पच्चक्रवाणं पुच्छा गतो, ओवामं चोरगहणविमोक्रवणता। तथाच हरवलु गाहावती वा गाहावलिपुत्तोषाधम्मसवपत्तियाए पज्जुवासेजा जावस वेव से जीवे जस्म पुष्विं दंडे अणिदिखत्ते उदाणिं अणिफिरवत्ते,एवं पश्यिागा विपरियाणा वि, मधदीहाउअ अपा उअ समाउअति एवमायाई ओवामाई मोतुं वसंतीमुत्ताणुगमे सुत्तमुच्चारेतवं तेणंकालेणं तेणं समएण रायगिहे णाम सागरे होत्था, रिद्धिस्थिति तममिद्धेवण्णतो [पामादीयं] जायपरिवोतस्स णं रायमिहस्स जारस बहिया उत्तरपूरस्थिमे दिमीभाए एत्य ण णालंदा णाम बाहिरिया होत्या अगमवण--
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