Book Title: Sukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Author(s): Umangsuri, Nemichandrasuri
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra
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ज्ञानावरणादि न त्वन्यतरदेव 'सर्वेण' गम्यमानत्वात् प्रकृतिस्थित्यादिना प्रकारेण बद्धं-क्षीरोदकवद् आत्मप्रदेशैः श्लिष्टं all कर्मणां कातदेव बद्धकमिति सूत्रार्थः ॥ १८ ॥ सम्प्रति कालमाह
लपरिमाणं उदहीसरिसनामाणं, तीसई कोडिकोडीओ । उक्कोसिया होइ ठिई, अंतमुहुत्तं जहन्निया ॥ १९॥
भावश्च। आवरणिज्जाण दुण्हं पि, वेयणिजे तहेव य। अंतराए य कम्मम्मि, ठिई एसा वियाहिया ॥ २०॥ उदहीसरिसनामाणं, सत्तरं कोडकोडीओ। मोहणिज्जस्स उक्कोसा, अंतमुहुत्तं जहन्निया ॥२१॥ तित्तीस सागरोवम, उक्कोसेणं वियाहिया। ठिई उ आउकम्मरस, अंतमुहुत्तं जहनिया ॥२२॥ उदहीसरिसनामाणं, वीसइं कोडकोडीओ। नामगोआण उक्कोसा, अंतमुहुत्तं जहन्निया ॥ २३ ॥ ___ व्याख्या-स्पष्टम् । नवरम्-उदधिना सदृक्-सदृशं नाम येषां तानि उदधिसदृग्नामानि-सागरोपमाणि तेषाम् | ॥ १९-२०-२१-२२-२३ ॥ सम्प्रति भावमभिधातुमाहसिद्धाणणंतभागे, अणुभागा हवंति उ । सवेसु वि पएसग्गं, सव्वजीवेसइच्छियं ॥ २४ ॥ | व्याख्या-सिद्धानामनन्तभागे 'अनुभागाः' रसविशेषा भवन्ति, 'तुः' पूरणे, अयं चाऽनन्तभागोऽनन्तसङ्ख्य एवेति । तथा 'सर्वेष्वपि' प्रक्रमादनुभागेषु, प्रदिश्यन्त इति प्रदेशाः-बुद्ध्या विभज्यमानास्तविभागैकदेशास्तेषामग्रं प्रदेशानं "सबजीवेसऽइच्छियं" ति सर्वजीवेभ्योऽतिक्रान्तम्, ततोऽपि तेषामनन्तगुणत्वादिति सूत्रार्थः ॥ २४ ॥ अध्ययनार्थोपसंहारव्याजेनोपदेष्टुमाह
उ०अ०६२

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