Book Title: Sukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Author(s): Umangsuri, Nemichandrasuri
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra
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अनगारस्य मार्गः।
तहेव भत्तपाणेसु, पयणे पयावणेसु य । पाणभूयदयट्ठाए, न पए न पयावए ॥१०॥ जलधन्ननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्ठनिस्सिया।हम्मति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खू न पयावए॥११॥ विसप्पे सवओधारे, बहुपाणविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए ॥१२॥ हिरन्नं जायरूवं च, मणसा वि न पत्थए । समलिट्टकंचणे भिक्खू, विरए कयविक्कए ॥१३॥ | किणंतो कइओ होइ, विक्किणंतो अवाणिओ। कयविक्कयम्मि वहतो, भिक्खू हवइ तारिसो॥१४॥ भिक्खियन केयवं,भिक्खुणाभिक्खवित्तिणा। कयविक्कए महादोसो, भिक्खावित्ती सुहावहा॥ समुयाणं उंछमेसेजा, जहासुत्तमणि दियं । लाभालाभम्मि संतुट्टे, पिंडवायं चरे मुणी ॥ १६॥ | अलोलो न रसे गिद्धो, जिम्भादंतो अमुच्छिओ। न रसट्टाए भुंजिजा, जवणट्ठाए महामुणी ॥१७॥ अच्चणं रयणं चेव, वंदणं पूयणं तहा । इड्डीसक्कारसम्माणं, मणसा वि न पत्थए ॥१८॥ सुकं झाणं झियाइज्जा, अणियाणे अकिंचणे । वोसट्टकाए विहरिज्जा, जाव कालस्स पज्जओ॥१९॥ |णिजूहिऊण आहारं, कालधम्मे उवहिए। चइऊण माणुसं बुंदि, पहू दुक्खा विमुच्चई ॥२०॥ निम्ममो निरहंकारो, वीयराओ अणासवो।संपत्तो केवलं नाणं, सासयं परिनिबुडे ॥२१॥त्ति बेमि॥
व्याख्या-गृहवासं परित्यज्य प्रव्रज्यामाश्रितो मुनिः 'इमान्' प्रतिप्राणिप्रतीततया प्रत्यक्षान् 'सङ्गान्' पुत्रकलत्रादीन् 'विजानीयात्' भवहेतवोऽमीति विशेषेणाऽवबुध्येत, ज्ञानस्य च विरतिफलत्वात् प्रत्याचक्षीतेत्युक्तं भवति । सङ्गशब्दव्युत्पत्तिमाह-यैः 'सज्यन्ते' प्रतिबध्यन्ते मानवाः उपलक्षणत्वादन्येऽपि जन्तवः ॥ 'तथे ति समुच्चये, 'एवेति पूरणे, हिंसामलीकं चौर्यमब्रह्मसेवनम् , इच्छारूपः कामः इच्छाकामस्तं चाऽप्राप्तवस्तुकाङ्क्षारूपं 'लोभं च' लब्धवस्तुविषयगृद्ध्या
परित्यज्य पणा मानवा नाकाम

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