Book Title: Sukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Author(s): Umangsuri, Nemichandrasuri
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra
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पत्रिंशं जीवाजीवविभक्तिनामकमध्ययनम् । संसारिजीववक्तव्यता।
श्रीउत्तरा- ओराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया। बेइंदिय तेइंदिय, चउरो पंचिंदिया चेव ॥ १२६ ॥ ध्ययनसूत्रे|XI व्याख्या-स्पष्टम् ।। १२६ ।। द्वीन्द्रियानाहश्रीनेमिच- बेइंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपज्जत्ता, तेसिं भेदे सुणेह मे ॥ १२७ ॥ न्द्रीया |
| किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाया। वासीमुहा य सिप्पीया, संखा संखगणा तहा॥१२८॥ सुखबोधा- पल्लोयाणुल्लगा चेव, तहेव य वराडगा । जलूगा जालगा चेव, चंदणा य तहेव य ॥१२९॥ ख्या लघु
इइ बेइंदिया एए, णेगहा एवमायओ। लोएगदेसे ते सके, न सवत्थ वियाहिया ॥ १३०॥ वृत्ति :।।
|संतई पप्पणाईया, अपजवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया, सपजवसिया वि य ॥ १३१॥| ॥३८३॥
वासाइं बारसेव उ, उक्कोसेण वियाहिया । बेइंदियआउठिई, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ॥ १३२॥ संखेजकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियकायठिई, तं कायं तु अमुंचओ ॥ १३३ ॥ अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं ॥ १३४॥ एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणाएसओ वा वि, विहाणाई सहस्ससो॥१३५॥ __ व्याख्या-सूत्रनवकं स्पष्टम् । नवरम्-'कृमयः' अशुच्यादिसम्भवाः, शेषास्तु केचित् प्रकटाः केचिद् यथास|म्प्रदाय वाच्याः ॥ १२७-१२८-१२९-१३०-१३१-१३२-१३३-१३४-१३५ ।। त्रीन्द्रियानाहतेइंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपजत्ता, तेसिं भेदे सुणेह मे ॥ १३६ ॥ कुंथुपिवीलिउहंसा, उक्कलुद्देहिया तहा । तणहारा कट्टहारा य, मालूगा पत्तहारगा ॥ १३७ ॥ कप्पासऽट्टिमिंजा य, तिदुगा तउसमिंजगा । सदावरी य गुम्मी य, बोधवा इंदगाइया ॥ १३८॥
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|संखेजकालमुकोसं. वियाहिया । बेइंदिया सपज्जवसिया वि य ॥२३M
एसिं वण्णओ चमतोमुत्तं जहन्न । बबईदियकायठिई, मामुहत्तं जहन्नयं ॥
॥३८३॥

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