Book Title: Sukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Author(s): Umangsuri, Nemichandrasuri
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra

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Page 783
________________ षट्त्रिंशं जीवाजीवविभक्तिनामकम| ध्ययनम् । संसारिजीववक्तव्यता । श्रीउत्तरा- भुओरगपरिसप्पा य, परिसप्पा दुविहा भवे । गोहाई अहिमाई य, इक्केका णेगहा भवे ॥१८॥ ध्ययनसूत्रे *लोएगदेसे ते सन्चे, न सम्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु, तेसिं वोच्छं तु चउविहं ॥१८२॥ श्रीनेमिच- संतई पप्पणाईया, अपजवसिया वि य । ठिई पडुच साईया, सपज्जवसिया वि य ॥१८३॥ न्द्रीया पलिओवमा उ तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया। आउठिई थलयराणं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ॥१८॥ सुखबोधा पलिओवमा उ तिन्नि उ, उक्कोसेण वियाहिया। पुवकोडीपुहुत्तं तु, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ॥१८॥ ख्या लघु कायठिई थलयराणं, अंतरं तेसिमं भवे । कालं अणंतमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ॥१८६॥ वृत्तिः । || एएसिं वन्नओ चव, गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वा वि, विहाणाई सहस्ससो॥१८७॥ ॥३८५॥ विजढम्मि सए काए, थलयराणं तुअंतरं। चम्मे उ लोमपक्खीया, तइया समुग्गपक्खीया ॥१८८॥ विययपक्खी य बोद्धवा, पक्खिणो उ चउबिहा । लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया ॥१८९॥ संतई पप्पणाईया, अपजवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य ॥१९०॥ पलिओवमस्स भागो, असंखिजइमो भवे । आउठिई खहयराणं, अंतोमुहुत्तं जहनिया ॥१९॥ असंखभागो पलियस्स, उक्कोसेण उ साहिओ। पुचकोडीपुहुत्तेणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥१९२॥ कायठिई खहयराणं, अंतरं तेसिमं भवे । कालं अणंतमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ॥१९३॥ एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ। संठाणादेसओ वा वि, विहाणाई सहस्ससो॥१९४॥ ___ व्याख्या-प्रकटान्येव । नवरम्- 'एकखुराः' हयादयः, 'द्विखुराः' गवादयः, गण्डी-वस्रोत्पक्ष्मिका तद्वद् वृत्ततया पदानि येषां ते 'गण्डीपदाः' गजादयः, "सणप्पय" त्ति सूत्रत्वात् 'सनखपदाः' सिंहादयः, "चम्मे" त्ति प्रक्रमात् OXOXOXOXOXOXOXOXOXOXOX ॥३८५॥

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