Book Title: Sukhbodhakhya Vruttiyutani Yttaradhyayanani
Author(s): Umangsuri, Nemichandrasuri
Publisher: Pushpchandra Kshemchandra

View full book text
Previous | Next

Page 749
________________ श्रीउत्तराध्ययनसूत्रे श्रीनेमिच न्द्रीया सुखबोधाख्या लघुवृत्तिः । चतुस्त्रिंशं लेश्याख्यमध्ययनम्। लेश्यानां नाम-वर्णरसद्वाराणि। ॥३६८॥ किण्हा नीला य काऊ य, तेऊ पम्हा तहेव य । सुक्का लेसा य छट्ठा उ, नामाइं तु जहक्कम ॥३॥ ___ व्याख्या-स्पष्टम् ॥ ३॥ वर्णानाहजीमूयनिद्धसंकासा, गवलरिट्ठगसन्निभा। खंजंजणनयणनिभा, किण्हलेसा उ वण्णओ॥४॥ नीलाऽसोगसंकासा, चासपिच्छसमप्पभा । वेरुलियनिद्धसंकासा, नीललेसा उ वण्णओ॥५॥ अयसीपुप्फसंकासा, कोइलच्छदसन्निभा। पारेवयगीवनिभा, काउलेसा उ वण्णओ॥६॥ हिंगुलुयधाउसंकासा, तरुणाइच्चसन्निभा । सुयतुंडपईवनिभा, तेउलेसा उ वण्णओ॥७॥ हरियालभेयसंकासा, हलिद्दाभेयसन्निभा । सणासणकुसुमनिभा, पम्हलेसा उ वण्णओ ॥ ८॥ संखंककुंदसंकासा, खीरधारसमप्पभा । रययहारसंकासा, सुक्कलेसा उ वण्णओ॥९॥ व्याख्या-"जीमूयनिद्धसंकास" त्ति प्राकृतत्वात् स्निग्धजीमूतसङ्काशा, गवलं-महिषशृङ्गं रिष्टक:-फलविशेषः तत्सन्निभा, "खंज" त्ति खञ्जनम् अञ्जनं-कजलं नयनमिति-उपचारात् तदेकदेशस्तन्मध्यवर्ती कृष्णसारस्तन्निभा कृष्णलेश्या 'वर्णतः' वर्णमाश्रित्य ॥ "वेरुलियनिद्धसंकास" त्ति प्राकृतत्वात् स्निग्धवैडूर्यसङ्काशा ॥ कोकिलच्छदः-तैलकण्टकः, पाठान्तरे कोकिलच्छविसन्निभा, शेषं स्पष्टमिति सूत्रषट्कार्थः ॥ ४-५-६-७-८-९ ॥ रसानाह जह कडुयतुंबगरसो, निंबरसो कडुयरोहिणिरसो वा। इत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ कण्हाइ नायवो ॥१०॥ जह तिकडुयस्स रसो, तिक्खो जह हथिपिप्पलीए वा। इत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ नीलाए नायवो ॥११॥ ॥३६८॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798