Book Title: Stavanavali
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ ॥अथ स्तवनावली प्रारंजः ॥ मङ्गलम् ॥ सकलकुशलवजी पुष्करावर्त्तमेघो, 3 रितति मिरजानुः कल्पवृदोपमानः ॥ जवजलनिधि पोतः सर्वसंपत्तिहेतुः, स नवतु नवतां जो श्रेयसे शांतिनाथः (श्रेयसे पार्श्वनाथः) ॥१॥ २ अथ सीमंधर जिन चैत्यवंदनं ॥ श्री सीमंधर वितराग, त्रिजुवन उपगारी ॥ श्री श्रेयांस पिताकुले, बहु शोना तुमारी ॥१॥ धन धन माता सत्यकी, जिन जायो जयकारी ॥ वृषन लंडने विराजमान वंदे नरनारी ॥२॥ धनुष पांचशे देहडी ए, सो हिये सोवन वान ॥ कीर्ति विजय उवकायनो, विनय धरे तुम ध्यान ॥३॥ ३ अथ चोवीश जिननं चैत्यवंदनं॥ पद्मप्रन ने वासुपूज्य, दोय राता कहीये ॥ चंधन ने सुविधि नाथ, दो उज्ज्वल लहीये ॥१॥ महिनाथ ने पार्श्व नाथ, दो नीला निरखा ॥ मुनिसुव्रत ने नेमनाथ दो अंजनल रिखा ॥२॥ शोले जिन कंचन समा ए, एवा जिन चोवीश ॥ धिरविमल पंमित तणो, झान विमल कहे शिष्य ॥३॥ इति ॥ ४ अथ श्रीशंखेश्वर पार्श्वजिन बंद ॥ सेवोपास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 162