Book Title: Sramana 2014 04
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 10
________________ कालिदास के रूपकों में प्रयुक्त प्राकृत का वैशिष्ट्य : 5 कञ्चुकी, दोनों नाट्याचार्य हरदत एवं गणदत तथा स्तुति पाठक वैतालिक को छोड़कर सभी पात्र शौरसेनी प्राकृत में ही अपने गद्यात्मक संवाद करते हैं। अन्य पुरुष पात्रों में राजा का मित्र विदूषक, कुब्ज सारसक तथा स्त्री पात्रों में मालवाधीश माधवसेन की भगिनी मालविका, अग्निमित्र की प्रधान महिषी धारिणी, अग्निमित्र की दूसरी पत्नी इरावती, मालविका की सखी बकुलावलिका, उद्यानपालिका, इरावती की परिचारिका निपुणिका, प्रतीहारी जयसेना, दूसरी दासी चेटी और विदर्भदेशीय दोनों शिल्पि कन्याएँ शौरसेनी भाषा का ही प्रयोग करते हैं। महाराष्ट्री प्राकृत का प्रयोग मध्यम श्रेणी के पुरुष पात्रों एवं परिव्राजकों को छोड़कर अन्य स्त्री पात्रों के पद्यात्मक सम्भाषण के लिए किया है। मालविकाग्निमित्रम् में महाराष्ट्री में पद्यात्मक संवाद कम हैं उसमें मात्र मालविका ही महाराष्ट्री में अपने पद्यात्मक संवाद बोलती है। विक्रमोर्वशीयम् नाटक के पुरुष पात्रों में चतुर्थ अंक में पुरुरवा माणवक, विदूषक का पुत्र सर्वदमन दौवारिक खेतक, भृत्य करभक, प्रधान नगर रक्षक, राजा का साला इत्यादि पात्र अपने गद्यात्मक संवाद प्राकृत भाषा में ही बोलते हैं तथा सभी स्त्री पात्र गद्यात्मक संवाद इसी भाषा में बोलते हैं। विक्रमोर्वशीयम् नाटक में कुछ स्थलों पर प्राकृत का प्रयोग न होकर अपभ्रंश का प्रयोग कराया गया है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् में मध्यम श्रेणी के पुरुष पात्रों तथा स्त्री पात्रों के पद्यात्मक संवाद महाराष्ट्री में हैं। अभिज्ञानशाकुन्तलम् में महाराष्ट्री प्राकृत में सम्भाषण करने वाले पात्रों में मुख्य हैं- शुकन्तला की सखियाँ प्रियम्वदा और अनुसूया, दोनों दासियाँ तथा गौतमी तपस्विनी। मध्यम श्रेणी तथा स्त्री पात्र का गद्यात्मक सम्भाषण शौरसेनी प्राकृत में हैं इसका मुख्य कारण सम्भवत: यह था कि महाराष्ट्री के समान स्वरों का इसमें आधिक्य न होने से वह अधिक सुखोच्चार्य थी और पात्रों के सम्भाषण के अधिक अनुकूल भी थी। मध्यम श्रेणी के पात्रों द्वारा शौरसेनी प्राकृत का प्रयोग इस बात की ओर भी संकेत देता है कि यह संस्कृत भाषा के अत्यन्त निकट थी।

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