Book Title: Sramana 2014 04
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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16 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 2 / अप्रैल - जून 2014 हितकर और मधुर वचन है
जल चंदण ससिमुत्ताचंदमणी तह णरस्स णिव्वाणं । ण करंति कुणड़ जह अत्थज्जुयं हिदमधुरमिदवयणं । । ७ सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार और उनका स्वरूपआचार्य श्री उमास्वामी ने तत्वार्थसूत्र में लिखा है
मिथ्योपदेशरहभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहार साकारमन्त्रभेदाः । । ' अर्थात् मिथ्योपदेश, रहोभ्याख्यान, कूटलेख क्रिया, न्यासापहार और साकार मन्त्र भेद - ये पाँच अतिचार सत्याणुव्रत के हैं
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मिथ्योपदेश ऐसा शास्त्र विरुद्ध उपदेश नहीं देना चाहिए, जिससे हिंसक भावना उत्पन्न हो तथा मिथ्यात्व की वृद्धि हो । रहोभ्याख्यानः किसी भी गुप्त बात को प्रकट करना रहोभ्याख्यान है, अतः सत्याणुव्रती को किसी की भी गुप्त बात को नहीं प्रकट करना चाहिए, अन्यथा सत्याणुव्रत में रहोभ्याख्यान नाम का अतिचार आ जाता है।
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कूटलेख क्रिया- झूठी बातें लिखना, झूठी गवाही देना, अन्य के नाम से उसकी आज्ञा बिना लिए कोई तथ्य लिखना आदि कूटलेख क्रियाएँ हैं।
न्यासापहार- किसी की धरोहर यदि किसी व्यक्ति के पास रखी है तो धरोहर रखने वाले व्यक्ति भूल से उसकी धरोहर कम देता है या उसका स्वामी उसकी धरोहर कम मांगता है तो उसे उसकी मांग के अनुसार ही सामग्री दे देने और शेष वस्तु अपने पास रख लेने से सत्याणुव्रत में न्यासापहार नाम का अतिचार आ जाता है।
साकार मन्त्रभेद - किसी व्यक्ति की चेष्टा द्वारा उसके अभिप्राय को जानकर अन्य व्यक्तियों से प्रकट करना या किसी व्यक्ति के शरीर या शरीर के किसी अंग की आकृति देखकर उसके गुप्त