Book Title: Sramana 2014 04
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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प्रकाशन-सूची : 71 २. आत्ममीमांसा -(ग्रं०मा०सं० १०); लेखक : पं० दलसुख मालवणिया;
प्रथम संस्करण १९५३; पृष्ठ : ६, १५२; आकार : क्राउन; अजिल्द, मूल्य ': रु० ७५.००। ३. स्वाध्याय - (ग्रं०मा०सं० १४, लघु); लेखक : महात्मा भगवानदीन;
प्रथम संस्करण १९५७; पृष्ठ : ८, १९२; आकार : क्राउन; सजिल्द, मूल्य
: रु० ६०.००। ४. जैन धर्म-दर्शन -(ग्रं०मा०सं० १९); लेखक : डॉ. मोहनलाल मेहता;
प्रथम संस्करण १९९९; पृष्ठ : ११+६०५; आकार : क्राउन; सजिल्द,
मूल्य : रु० २००.००। ५. तत्त्वार्थसूत्र (विवेचन सहित) - (ग्रं०मा०सं० २२); उमास्वाति; विवेचक
: पं० सुखलाल संघवी : डॉ० मोहनलाल मेहता व श्री जमनालाल जैन; पंचम संस्करण २००१; पृष्ठ : २६, १३७, २७८; आकार : डिमाई; अजिल्द, मूल्य : रु० १५०.००। आनन्दघन का रहस्यवाद - (ग्रं०मा०सं० २८); लेखिका : साध्वी श्री सुदर्शना श्री जी; प्रथम संस्करण १९८३; पृष्ठ : ३४२, १६; आकार :
डिमाई सजिल्द / अजिल्द, मूल्य : रु० १००.००। ७. जैन दर्शन में आत्म विचार - (ग्रं०मा०सं० ३१); लेखक : डॉ०
लालचन्द जैन; प्रथम संस्करण १९८४; पृष्ठ : ८, ३१८, ४; आकार : डिमाई; सजिल्द/अजिल्द, मूल्य : रु० १००.००। धर्म का मर्म - (ग्रं०मा०सं० ३६); लेखक : प्रो० सागरमल जैन; द्वितीय संस्करण १९८४; पृष्ठ ७,५१; आकार : डबल क्राउन; अजिल्द, मूल्य :
रु० ४०.००। ९. स्याद्वाद और सप्तभंगीनय (आधुनिक व्याख्या) - (ग्रं०मा०सं०
४७); लेखक : डॉ० भिखारीराम यादव; प्रथम संस्करण १९८९; पृष्ठ :
४४, २३०; आकार : डिमाई; अजिल्द, मूल्य : रु० १४०.००। १०.अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और सप्तभंगी: सिद्धान्त और व्यवहार -
(ग्रं०मा०सं०५२); लेखक : प्रो० सागरमल जैन; प्रथम संस्करण १९९९;
पृष्ठ ४३; आकार : डिमाई; अजिल्द, मूल्य : रु० ३०.००। ११.जैन कर्म सिद्धान्त का उद्भव और विकास - (ग्रं०मा०सं० ६५);
लेखक : डॉ० रवीन्द्रनाथ मिश्र; प्रथम संस्करण १९९३; पृष्ठ : ११, २४८; आकार : डिमाई; अजिल्द, मूल्य : रु० २००.००।