Book Title: Sramana 2014 04
Author(s): Ashokkumar Singh, Rahulkumar Singh, Omprakash Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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12 : श्रमण, वर्ष 65, अंक 2/अप्रैल-जून 2014 पाँच व्रतों का उल्लेख अणुव्रत एवं महाव्रत के रूप में किया है
हिंसाऽनृतस्तेयाऽब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम्-देशसर्वतोऽणुमहती। अर्थात् प्राणिवध (हिंसा), मृषावाद (झूठ), अदत्तग्रहण (चोरी), मैथुन (व्यभिचार) और परिग्रह- इन पाँचों से विरत होना श्रावक के पञ्चाणुव्रत हैं। एकादेश पञ्च पापों के त्याग को महाव्रत कहा जाता है। इनका स्वरूप१. अहिंसाणुव्रत - अणुव्रतधारी श्रावक अहिंसा व्रत का आंशिक रूप से पालन करता है। श्रावक केवल स्थूलहिंसा का ही त्याग कर पाता है क्योंकि गृहस्थ होने के नाते उससे प्राय: सूक्ष्म हिंसा होती रहती है, इसलिए श्रावक का स्थूल हिंसा त्याग आंशिक विरति कहलाता है। आचार्य समन्तभद्रस्वामी ने उल्लेख किया है कि संकल्प से मन, वचन और काय के द्वारा जो कृत, कारित और अनुमोदना से द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय प्राणियों की हिंसा नहीं करता है, उसको निपुण पुरुष गणधर देवों ने स्थूलवधविरमण अर्थात् अहिंसाणुव्रती कहा है
संकल्पात्कृतकारितमननाद्योगत्रयस्य चरसत्वान्।
न हिनस्ति यत्तदाहुः स्थूलवधाद्विरमणं निपुणाः।' हिंसा के चार भेद - १) आरम्भी हिंसा, २) उद्योगी हिंसा, ३) विरोधी हिंसा, ४) संकल्पी हिंसा। १) आरम्भी हिंसा- पानी भरना, झाड़ लगाना, चूल्हा जलाना, गृह निर्माण आदि कार्यों में जो हिंसा होती है, उसे 'आरम्भी' हिंसा कहते हैं।
२) उद्योगी हिंसा- न्यायानुकूल जीवनोपयोगी आजीविका में होने वाली हिंसा 'उद्योगी हिंसा' है। ३) विरोधी हिंसा- व्यक्ति, धर्म, देश, समाज की रक्षा के लिये की जाने वाली हिंसा विरोधी हिंसा है। श्रावक विरोधी हिंसा मजबूरीवश करता है।