Book Title: Sramana 2009 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 16
________________ प्रेक्षाध्यान द्वारा भावनात्मक चेतना का विकास के प्रति जागरूक होता है उसके जीवन के हर व्यवहार में प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है और उन्हें ग्रहण करता है। जागरुकता आ जाती है। प्रत्येक क्रिया के प्रति वह जागरूक जब भावना हाइपोथेलेमस को प्रभावित करती है तब हो जाता है। हाइपोथेलेमस हमारे हारमोन्स और ग्रन्थियों को प्रभावित करता ज्ञान और आचरण की दूरी को कम करने के लिए है और व्यक्ति के भाव प्रभावित होते हैं। अत: भावनात्मक बौद्धिक विकास और भावनात्मक विकास होना चाहिए, किन्तु विकास का मूल आधार हमारी भावधारा है। प्रेक्षाध्यान का दोनों का विकास संतुलित होना चाहिए। केवल बौद्धिक विकास प्रयोग केवल श्वास,शरीर आदि को देखने का प्रयोग मात्र नहीं से कलह का वातावरण पैदा हो सकता है। परन्तु भावनात्मक है। श्वास और शरीर तो मात्र आलम्बन हैं, माध्यम हैं। प्रेक्षाध्यान विकास के द्वारा स्थिति को बदला जा सकता है। अन्तःस्रावी ऐसी भावधारा का प्रयोग है जो सम है। अर्थात जहाँ राग-द्वेष. ग्रन्थियों के स्राव भी हमारे भावों को प्रभावित करते हैं। प्रिय-अप्रिय जैसी कोई बात नहीं है, वहाँ चेतना की केवल ग्रन्थि-तंत्र और भावनाओं का गहरा सम्बन्ध है। कुछ व्यक्तियों शुद्ध प्रवृत्ति है, समता है। जब प्रवृत्ति होती है तब हमारा सारा में ग्रन्थि-तंत्र संतुलित रूप में कार्य करता है, तो कुछ में तंत्र प्रभावित होता है। जब तक व्यक्ति भावधारा और ग्रन्थितंत्र असंतुलित। किसी ग्रन्थि का स्राव अधिक होता है तो किसी के रसायनों को परिष्कृत करने का प्रयास नहीं करेगा तब तक का कम। अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग ग्रन्थियाँ अत्यधिक बौद्धिक विकास हो जाने पर भी मानसिक समस्याओं कम या अधिक कार्य करती हैं। इसको ऐसे भी समझा जा का समाधान संभव नहीं है। सकता है कि जब व्यक्ति में द्वेष, तनाव, आवेग आदि अधिक आज यह सद्यस्क आवश्यकता है कि व्यक्ति होते हैं तो उसकी एड्रीनल ग्रन्थि अधिक सक्रिय हो जाती है; भावनात्मक विकास की प्रक्रिया को अपनाये। प्रेक्षाध्यान परिष्कार जो शीघ्र निर्णय लेती है, वह गहराई में जाकर सोचता है तो की अचूक प्रक्रिया का एक अंग चैतन्यकेन्द्र-प्रेक्षा है। यह इसका अभिप्राय है कि उसकी पिच्यूटरी ग्रन्थि अच्छा कार्य भावनात्मक परिष्कार की अचूक प्रक्रिया है। हमारे शरीर में कर रही है। यदि व्यक्ति कामोद्दिप्त है, कामवासना सक्रिय है, अनेक चुम्बकीय क्षेत्र हैं जो रसायनों से प्रभावित होते हैं। वहाँ निरन्तर काम का तनाव बना रहता है तो उस व्यक्ति की हमारी चेतना और वृत्तियां प्रकट होती हैं। जब व्यक्ति का भाव गोनाड्स ज्यादा सक्रिय होती है। इस तरह प्रत्येक व्यक्ति में अशुद्ध होता है तो ग्रन्थियों के स्राव भी अशुद्ध होते हैं। व्यक्ति अन्तर होता है और यह अन्तर अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों का जैसा चिन्तन एवं आचरण होगा वैसे ही ग्रन्थियों के स्राव के असंतुलन और संतुलन से ही उत्पन्न होता है। यहाँ प्रश्न होंगे। हमारी ग्रन्थियों को प्रभावित करने वाले तीन तत्त्व हैंउपस्थित होता है कि क्या इस असंतुलन को दूर किया जा चिन्तन, प्रवृत्ति और संवेदन। व्यक्ति की ये तीनों क्रियाएं सकता है? क्या व्यक्ति में संतुलन की स्थिति लाई जा सकती चिन्तन, प्रवृत्ति और संवेदन अच्छी होती हैं तो ग्रन्थियों का है? क्या संतुलित व्यक्ति का निर्माण किया जा सकता है? इन स्राव भी अच्छा होता है। किसी ने कहा भी है - We are सभी प्रश्नों का उत्तर सकारात्मक दिया जा सकता है। क्योंकि nice today and they are nice tomorrow. यदि हम प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया ग्रन्थियों के स्रावों को संतुलित और ग्रन्थियों के प्रति सही व्यवहार करते हैं तो ग्रन्थियां भी हमारे परिष्कृत करने की प्रक्रिया है। ग्रन्थियों के जो स्राव बनते हैं वे प्रति सही व्यवहार करेंगी। यदि हमारे विचार बुरे हैं तो ग्रन्थियों एक तरह के नहीं होते हैं और इनके कारणों को विज्ञान अभी के स्राव भी खराब होंगे और व्यक्ति अपराधी मनोवृत्ति वाला तक सिद्ध नहीं कर पाया है। कर्मशास्त्र की दृष्टि से देखा जाए होगा। वह शराब, तम्बाकू, नशीले पदार्थ आदि व्यसनों का तो सूक्ष्म शरीर या सूक्ष्म चेतना में जिस भावधारा का स्पन्दन सेवन करने लगेगा जिससे शरीर के साथ-साथ चेतना भी होता है वह अपने समतुल्य भावधारा को उत्पन्न करता है और विकृत हो जायेगी और पूरा भावतंत्र असंतुलित हो जायेगा। इन व्यक्ति में उसी प्रकार के भाव बन जाते हैं। ये भाव ही स्राव बुराईयों से बचने का एकमात्र उपाय है- बौद्धिक विकास के को नियंत्रित करते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी कहते हैं कि व्यक्ति साथ-साथ भावनात्मक विकास। ज्ञान के साथ चारित्र का के मस्तिष्क में जो हाइपोथेलेमस होता है वह भावनाओं के विकास होने पर ही सख और शांति की अनुभूति हो सकेगी।

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