________________
श्रमण, वर्ष ६०, अंक १ जनवरी-मार्च २००९
जैन साहित्य में कृष्ण का स्वरूप
डॉ० शंभु नाथ सिंह
प्राचीन काल से दो परम्परायें भारतवर्ष में समान रूप धर्मोपदेशक कहलाते हैं। एक ओर पितामह भीष्म और द्रोणाचार्य से प्रवाहित हो रही हैं- वैदिक परम्परा एवं श्रमण परम्परा। का अन्त उन्हें कुशल राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ की कोटि में श्रमण परम्परा के अन्तर्गत जैन एवं बौद्ध दो परम्परायें आती ला खड़ा करता है तो दूसरी ओर अर्जुन का रथ चलाना उन्हें हैं। वैदिक और श्रमण दोनों ही परम्पराओं में किसी न किसी सेवक तथा भरी सभा में द्रौपदी की तार-तार होती लज्जा को रूप में कृष्ण का स्वरूप हमें देखने को मिलता है। वैदिक बचाना उन्हें साधारण मानव की भाँति जन-जन का मित्र बना परम्परा में कृष्ण को जहाँ भगवान् विष्णु का अवतार माना देता है। गया है वहीं जैन परम्परा में कृष्ण का वर्णन श्लाघनीय पुरुष ऋग्वेद,आरण्यक,ब्राह्मण तथा उपनिषदों में कृष्ण के के रूप में प्राप्त होता है, तो बौद्ध परम्परा में एक मानव के उल्लेख प्राप्त होते हैं। ऋग्वेद में कृष्ण के तीन रूपों का उल्लेख रूप में उल्लेख मिलता है। यदि समग्रता की दृष्टि से देखा मिलता है-१.मंत्रद्रष्टा ऋषि के रूप में,२. अपत्यवाचक के जाए तो सबमें श्रेष्ठ मानव ही है, क्योंकि भगवान को भी रूप में ३. कृष्णासुर के रूप में। ऋग्वेद के अष्टम और दशम अपनी अभिव्यक्ति के लिए मानव का ही रूप धारण करना मंडलों में 'कृष्ण' को मंत्रद्रष्टा ऋषि कहा गया है। ऋग्वेद के पड़ता है। महर्षि व्यास ने महाभारत में बड़े ही स्पष्ट शब्दों में प्रथम मंडल में कृष्ण का अपत्यवाचक रूप में उल्लेख मिलता उद्घोषणा की है कि नहि मानुषात् श्रेष्ठतरं हि किञ्चित्। है। ऋग्वेद के ही अष्टम मंडल में 'कृष्ण' नाम के एक असुर' अर्थात् मानव से श्रेष्ठ कोई नहीं है। वैदिक, जैन एवं बौद्ध का उल्लेख मिलता है, जो गर्भवती स्त्रियों का वध करता था। जितनी भी परम्पराएँ हैं सभी ने मानव की श्रेष्ठता को स्वीकार ऐतरेय आरण्यक में 'कृष्ण हारीत' नाम का उल्लेख किया है। न केवल भारतीय परम्परा बल्कि पाश्चात्य परम्परा में है। तैतिरीय आरण्यक में कृष्ण के देवत्व की चर्चा है। भी मानव की श्रेष्ठता को स्वीकार करते हुए ग्रीक दार्शनिक कौशीतकी ब्राह्मण तथा छांदोग्योपनिषद् में 'आंगिरस कृष्ण' प्रोटागोरस ने कहा है 'Man is the measure of all things.' का उल्लेख है। यह नाम संभवत: आंगिरस ऋषि के यहाँ यही कारण है कि भगवान भी मानव तन को धारण कर अपने अध्ययन करने के कारण दिया गया हो। को धन्य समझते हैं।
महाभारत में कृष्ण को वासुदेव, विष्णु, नारायण, सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय में कृष्ण के बहुआयामी गोविन्द, देवकीनन्दन आदि नामों से अभिहित किया गया है।
। विकास कई रूपों में देखा जाता है- समाज अठारह पुराणों में से लगभग दश पुराण ऐसे हैं जिनमें कृष्ण सुधारक के रूप में, भगवान् या धार्मिक नेता के रूप में, के दिव्य स्वरूप का उल्लेख मिलता है, यथा- गरुड़पुराण, कुशल राजनीतिज्ञ या कूटनीतिज्ञ के रूप में, कुशल सेवक के कूर्मपुराण, वायुपुराण, नारदपुराण, देवी भागवत, अग्निपुराण, रूप में आदि। एक ओर कृष्ण द्वारा आसुरी शक्तियों का पद्यपुराण, विष्णुपुराण, हरिवंशपुराण तथा श्रीमद्भागवतपुराण। विनाश कर पृथ्वी पर से पाप का अंत करना सामाजिक स्तर श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध एवं विष्णुपुराण में कहा गया है पर उन्हें युग-प्रवर्तक बनाता है तो दूसरी ओर मानव रूप में कि ब्रह्मा और शिव कृष्ण जन्म के अवसर पर अन्य देवताओं उनके द्वारा किये गये असाधारण कार्य उन्हें लीलावतारी भगवान् के साथ उनके दर्शन के लिए जाते हैं और देवता के रूप में के रूप में पूजित करवाता है जिसके कारण वे धर्मोद्धारक और उनकी वंदना करते हैं।' * डी०टी० २२६९, धुर्वा, राँची - ४