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पार्श्वचन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
पार्श्वचन्द्रसूरि (वि०सं० १५३७ में जन्म, १५४७
में दीक्षा, वि०सं० १५५४ में उपाध्याय पद, वि०सं० १५६५ में क्रियोद्धार, अनेक ग्रन्थों के रचनाकार, वि०सं० १६१२ में
स्वर्गस्थ) विनयदेवसूरि समरचन्द्रसूरि (वि०सं० १६०५ में आचार्य
पद प्राप्त, वि०सं० १६२६ में
स्वर्गस्थ) राजचन्द्रसूरि विमलचन्द्रसूरि
जयचन्द्रसूरि
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका हे पार्श्वचन्द्रगच्छ की चार पट्टावलियां आज प्राप्त होती हैं। इनमें से प्रथम पट्टावली'६ वि०सं० की १८वीं शती में रची गयी प्रतीत होती है तथा अन्य तीनों विक्रम सम्वत् की २०वीं शती के अंतिम दशक में। प्रथम पट्टावली का प्रारम्भ सुधर्मा स्वामी से होता है। चूंकि इस गच्छ का उद्भव नागपुरीयतपागच्छ से माना जाता है और नागपुरीयतपागच्छ का बृहद्गच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के शिष्य पद्मप्रभसूरि से। अत: इस पट्टावली में पद्मप्रभसूरि और उनके बाद के जिन पट्टधर आचार्यों का नाम और क्रम मिलता है, वह इस प्रकार है: तालिका - २
पद्मप्रभसूरि (भवुनदीपक के प्रणेता) प्रसन्नचन्द्रसूरि (वि०सं० ११७४ में नागपुरीय
तपागच्छ के प्रवर्तक) गुणसमुद्रसूरि जयशेखरसूरि (वि०सं०१३०१ में आचार्य पद
प्राप्त) वज्रसेनसूरि (वि०सं० १३४२ में आचार्य पद
| प्राप्त) हेमतिलकसूरि (वि०सं० १३९९ में दिल्ली
के अधिपति फिरोजशाह तुगलग
से भेंट किया) रत्नशेखरसूरि (फिरोजशाह तुगलक के प्रति
बोधक) हेमचन्द्रसूरि पूर्णचन्द्रसूरि (वि०सं० १४२४ में आचार्य पद
प्राप्त) हेमहंससूरि (वि०सं०१४५३ में आर्चाय पद
पर प्रतिष्ठापित) पंन्यास लक्ष्मीनिवास
पद्मचन्द्रसूरि (वि०सं० १६८८ में दीक्षा, वि०सं०
। १७४४ में स्वर्गस्थ) मुनिचन्द्रसूरि (वि०सं० १७२२ में आचार्य पद,
वि०सं० १७४४ में भट्टारक पद,
वि०सं० १७५० में निधन) नेमिचन्द्रसूरि (वि०सं० १७५० में भट्टारक पद
प्राप्त) पार्श्वचन्द्रगच्छ की दूसरी पट्टावली में पद्मप्रभसूरि से लेकर मुनिवृद्धिचन्द्र तक का पट्टक्रम प्राप्त होता है, जो इस प्रकार है:
क
तालिका-३
पद्मप्रभसूरि प्रसत्रचन्द्रसूरि गुणसमुद्रसूरि जयशेखरसूरि वज्रसेनसूरि हेमतिलकसूरि रत्नशेखरसूरि
पंन्यास पुण्यरत्न (सर्वविद्याविशारद, वि०सं०
१४९९ में विद्यमान) पंन्यास साधुरत्न