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पार्श्वचन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
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संवत् १८८४ मिति जेठ सुदि ६ शुक्रवारे भट्टारक श्री वि०सं० १९०९ में अन्तरंगकुटुम्बकबीलाचौढालिया १०८ श्रीकनकचंद्रसरिजी संतानीय पं० श्रीवक्तचंदजीकानांपादका के रचनाकार वीरचन्द्र भी हर्षचन्द्रसरि के प्रशिष्य और मनि प्रतिष्ठापिता श्रीबीकानेर नगरे।
इन्द्रचन्द्र के शिष्य थे।२८ जैसा कि ऊपर हम देख चुके हैं पट्टावलियों में उल्लिखित शिवचन्द्रसूरि के पट्टधर पट्टावलियों में हर्षचन्द्रसूरि के दो अलग-अलग शिष्यों हेमचन्द्रसूरि भानुचन्द्रसूरि और उनके पट्टधर विवेकचंद्रसूरि के बारे में किन्हीं और मुक्तिचंद्रसूरि का नाम मिलता है और इन दोनों मुनिजनों अन्य साक्ष्यों से कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती। प्राय: यही बात के पट्टधर के रूप में भ्रातृचन्द्रसूरि का। भ्रातृचन्द्रसूरि के दो विवेकचंद्रसूरि के पट्टधर लब्धिचंद्रसूरि के बारे में भी कही जा शिष्य सागरचन्द्र और देवचन्द्र हुए। इनका पट्टावलियों में ऊपर सकती है। इनके पट्टधर हर्षचन्द्रसूरि हुए, जो अपने समय के नाम आ चुका है। सागरचन्द्रसूरि के पट्टधर उनके शिष्य मुनि प्रभावशाली आचार्य थे। इनके द्वारा रचित चौबीसजिनपूजा वृद्धिचन्द्र हुए। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि पट्टावलियों से जहां नामक कृति प्राप्त होती है।२६ वि०सं० १९०२ में इन्होंने अपने इस गच्छ के केवल पट्टधर आचार्यों के नाम ज्ञात होते हैं वहीं गुरु लब्धिचंद्रसूरि की चरणपादुका स्थापित की।
ग्रन्थ प्रशस्तियों तथा अभिलेखीय साक्ष्यों से पट्टधर आचार्यों संवत् १९०२ शाके १७६७ प्र। मासोत्तमे आषाढ़ के अतिरिक्त अन्य मुनिजनों के नाम भी ज्ञात हो जाते हैं। यह मासे कृष्णपक्षे ८ अष्टम्यां तिथौ शुक्रवासरे बात सभी गच्छों के इतिहास के अध्ययन के संदर्भ में प्रायः श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिगच्छाधिराज भट्टारकोत्तम भट्टारक पुरन्दर समान रूप से कही जा सकती है। उक्त सभी साक्ष्यों के भट्टाराकाणां श्री १०८ श्री श्री श्री लब्धिचंद्रसूरिश्वराणं पादुके आधार पर इस गच्छ के मुनिजनों की एक विस्तृत तालिका प्रतिष्ठापिता तंच्छिष्य भट्टारकोत्तम भट्टारक श्रीहर्षचंद्रसूरि जिद्भि निर्मित की जा सकती है, इस प्रकार है : श्रीरस्तुतराम्।
द्रष्टव्य - तालिका क्रमांक ७