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श्रमण, वर्ष ६०, अंक १ जनवरी-मार्च २००९
पार्श्वचन्द्रगच्छ का संक्षिप्त इतिहास
शिवप्रसाद
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श्वेताम्बर परम्परा में समय-समय पर अस्तित्व में जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है आचार्य पार्शचन्द्रसूरि आये विभिन्न गच्छों में नागपुरीयतपागच्छ भी एक है। इस गच्छ अपने समय के विद्वान् और प्रभावक जैन मुनि थे। उनके द्वारा की पट्टावलियों के अनुसार वडगच्छीय आचार्य वादिदेवसूरि के रची गयी अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियाँ मिलती हैं जिनमें से कुछ शिष्य पद्मप्रभसूरि द्वारा नागौर में उग्र तप करने के कारण वहां इस प्रकार हैं : के शासक द्वारा उन्हें 'तपा' विरुद् प्रदान किया गया। धीरे-धीरे १. आचारांगप्रथमश्रुतस्कन्धबालावबोध उनकी शिष्य सन्तति इसी आधार पर नागपुरीयतपागच्छ के
तन्दुलवेचारियपयन्नबालावबोध नाम से विख्यात् हुई। इस गच्छ में कई विद्वान् और प्रभावशाली ३. प्रश्नव्याकरणसूत्रबालावबोध मुनिजन हो चुके हैं। इसी गच्छ में वि० सम्वत् की १६वीं शती ४. औपपातिकसूत्रबालावबोध के अंतिम चरण में हुए आचार्य हेमहंससूरि की परम्परा में हुए
सूत्रकृतांगसूत्रबालावबोध आचार्य साधुरत्नसूरि के शिष्य पार्शचन्द्रसूरि अपने समय के
रूपकमाला (रचनाकाल-वि०सं०१५८६) एक प्रखर विद्वान् और प्रभावशाली जैन आचार्य थे। उनके द्वारा
साधुवंदना रची गयी अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियां मिलती हैं। इनके पश्चात् ८. चारित्रमनोरथमाला इनकी शिष्यसंतति इन्हीं के नाम पर पार्श्वचन्द्रगच्छ के नाम से ९. श्रावकमनोरथमाला प्रसिद्ध हई और आज भी इस परम्परा के अनयायी मनिजन एवं १०. संगरंगप्रबन्ध साध्वियां विद्यमान हैं।
११. वस्तुपाल तेजपालरास (रचनाकाल वि०सं० पार्श्वचन्द्रगच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये
१५९७) आवश्यक साहित्यिक एवं अभिलेखीय दोनों प्रकार के साक्ष्य १२. मुंहपत्तिछत्तीसी उपलब्ध हैं। इस गच्छ के मुनिजनों द्वारा रचित ग्रन्थों की १३. केशिप्रदेशीबंध प्रशस्तियों तथा उनके प्रेरणा से लिखवायी गयी या स्वयं १४. खंधकचरित्र (रचनाकाल - वि०स० १६००) अध्ययनार्थ लिखे गये ग्रन्थों की प्रशस्तियों के साथ-साथ इस इनके शिष्य समरचन्द्र भी विद्वान् जैनाचार्य थे। अपने गच्छ की तीन पट्टावलियाँ भी मिलती हैं। इन सब के साथ- गुरु पार्श्वचन्द्रसूरि की स्तुति में इन्होंने पार्थचन्द्रसूरिस्तुतिसंझाय साथ इस गच्छ से सम्बद्ध कुछ अभिलेखीय साक्ष्य भी मिलते की रचना की। इनके द्वारा रचित अन्य कृतियों का विवरण हैं, जो विक्रम सम्वत् की १८वीं शती से लेकर वि०सं० की निम्नानुसार है : २०वीं शती तक के हैं। साम्प्रत निबन्ध में उन सभी साक्ष्यों के १. चतुर्विंशतिजिननमस्कार (रचनाकाल वि०सं० आधार पर इस गच्छ के इतिहास की एक झलक प्रस्तुत करने
१५८८) का एक प्रयास किया गया है। अध्ययन की सुविधा के लिये २. प्रत्याख्यानचतुःसप्ततिका सर्वप्रथम साहित्यिक साक्ष्यों-ग्रन्थ एवं पुस्तक प्रशस्तियों तथा ३. पंचविंशतिक्रियासंझाय पट्टावलियों और इनके पश्चात् अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण ४. आवश्यकअक्षरप्रमाणसंझाय प्रस्तुत है।
५. शत्रुजयमंडनपार्श्वनाथस्तवन * पोस्ट डाक्टोरल रिसर्च फेलो. आई०सी०एच०आर० (एन०आई०एच०आर०) वाराणसी