Book Title: Sramana 2009 01
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 17
________________ १२ श्रमण, वर्ष ६०, अंक १/जनवरी-मार्च २००९ यह तभी संभव है जब भावनात्मक विकास होगा और उसे हैं तथा विद्युत प्रवाह, प्राणप्रवाह और रासायनिक स्रावों को केवल ध्यान के द्वारा ही किया जा सकता है। ध्यान का अर्थ प्रभावित कर सकते हैं। ध्यान का मूल उद्देश्य है व्यक्ति को ही है जीवन में जागरूकता का विकास। ध्यान से चेतना इतनी यथार्थ से परिचित कराना, यथार्थ में रह सकने की क्षमता निर्मल बन जाती है कि प्रत्येक प्रवृत्ति में समता अवतरित हो प्रकट करना। भावनात्मक परिवर्तन ध्यान का मूल लक्ष्य है जाती है। समता की अनुभूति का ही नाम ध्यान है। ध्यान के और जब यह होता है तो शेष सभी परिवर्तन स्वतः होते पृष्ट अभ्यास के द्वारा ही हम भावधारा को पवित्र बना सकते रहते हैं। सन्दर्भः १. आचार्य महाप्रज्ञ, अवचेतन मन से सम्पर्क, जैन ४. आचार्य महाप्रज्ञ, प्रेक्षाध्यान : श्वास प्रेक्षा, जैन विश्वभारती, लाडनूं, २००३, पृ०-३७ विश्वभारती, लाडनूं। २. आचार्य महाप्रज्ञ, चित्त और मन, जैन विश्वभारती, ५. युवाचार्य महाप्रज्ञ, चित्त और मन, जैन विश्वभारती, लाडनूं, १९९४, पृ०-९५ ___ लाडनूं, १९९३, पृ०-२० ३. आचार्य महाप्रज्ञ, कैसे सोंचे, जैन विश्वभारती, लाडनूं, ६. आचार्य महाप्रज्ञ, अवचेतन मन से सम्पर्क, पृ०-४५ १९९९, पृ०-१२७

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