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श्रमण, वर्ष ६०, अंक १ जनवरी-मार्च २००९
जैन धर्म का सामाजिक क्रान्ति के रूप में मूल्यांकन
डॉ० आनन्द कुमार शर्मा*
जैन धर्म देश के प्राचीनतम धर्मों में से एक है। जैन धर्म का जीवन जटिल, अव्यावहारिक व्यवस्थाओं में जकड़ा हुआ की प्राचीनता सैन्धव सभ्यता से प्राप्तवृषभ की मूर्तियों के आधार था। भारतवर्ष का विशाल जनसमूह आर्थिक विपन्नता के बोझ पर प्रमाणित की जाती है। हड़प्पा एवं मोहनजोदाड़ो से प्राप्त के नीचे दबा था। समाज में ऊँच-नीच,अमीरी-गरीबी का भाव मर्तियाँ किसी न किसी रूप में ऋषभदेव' की प्रतीक रही होंगी। विद्यमान था और इस कारण समाज का बहुत बड़ा समुदाय किन्तु इतना तो तय है कि ऋग्वेद में ऋषभ' शब्द का उल्लेख आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार विहिन था। ऐसे समय में जैन हुआ है। यजुर्वेद में उल्लेखित है - 'ऋषभ' धर्म-प्रवर्तकों धर्म ने अपरिग्रह एवं सम्यक्-आचरण का संदेश दिया जिसमें में श्रेष्ठ हैं। अथर्ववेद एवं गोपथब्राह्मण में उल्लेखित 'स्वयंभू आर्थिक समानता एवं सर्वोदय की समाजवादी विचारधारा काश्यप का तादात्म्य ऋषभदेव' सेकियाजाता है। श्रीमद्भागवत निहित थी। अपरिग्रह अर्थात् उतना ही उपयोग करो, जितना में भी ऋषभदेव' का उल्लेख हुआ है। जैन धर्म में मान्य चौबीस आवश्यक हो। इससे समाज के सभी लोगों को वस्तुएँ मिल तीर्थंकरों में ऋषभदेवप्रथम तथा महावीर चौबीसवें तीर्थंकर थे। सकेंगी। अपरिग्रह आवश्यकताओं के अनन्त फैलाव पर तार्किक
महावीर का काल ईसा पूर्व छठी शताब्दी धार्मिक क्रान्ति रोक का संदेश देता है। इच्छाओं पर नियंत्रण, समाज में के रूप में विख्यात है। यही वह काल है जब जैन धर्म ने अपने असामाजिकता एवं असंतुलन की स्थिति पर अंकुश ही अपरिग्रह पूर्ण विकसित स्वरूप को प्राप्त किया था। धार्मिक क्रान्ति का का लक्ष्य है। ही प्रतिफल है कि जैन धर्मने अपने सामाजिक विचारों एवं मूल्यों
जैन धर्म ने समाज में ऊँच-नीच,अमीर-गरीब, जातिसे तत्कालीन समाज में दबे, कुचले एवं पिछड़े व्यक्तियों को पाति, स्त्री-पुरुष सभी को समान भाव से देखा। महावीर सम्बल प्रदान किया। अपने सशक्त साहित्यिक एवं वैचारिक स्वामी ने संघ में सभी वर्गों का स्वागत किया एवं उन्हें वाङ्मय से समाज में समानता का संदेश दिया जिससे समाज मान्यता प्रदान की। जैन संघों एवं जैन धर्म के अनुयायियों ने के उत्थान का मार्ग प्रशस्त हुआ।
अनेक समाज हितैषी कार्य किये जिससे समाज के प्रत्येक वर्ग समाजवाद की अवधारणा
मुख्यत: गरीब एवं निर्धनों को अत्यधिक लाभ हआ। जैन सम्पूर्ण जैन वाङ्मय के अध्ययन से विदित होता है कि धर्मावलम्बियों ने औषधालयों, विश्रामालयों, शिक्षण संस्थाओं इसमें समाजवाद की विचारधारा के बीज निहित हैं। जैन धर्म आदि की नि:शुल्क व्यवस्था की जिससे निर्धनों एवं निम्न वर्ग के सिद्धान्त सम्पर्ण मानवमात्र के हित एवं समानता का संदेश के लोगों के प्रति दयाभाव, अनुग्रह एवं दानभावना का देते हैं। जैन मनीषियों का व्यवहार भी सैद्धांतिक विचारधारा से विकास हुआ। मेल खाता है। जैन मनीषियों ने जनमानस को सात्त्विक जीवन नारी की स्थिति में क्रांतिकारी बदलावों का सूत्रपात जीने का संदेश दिया जिसका समाज पर दूरगामी परिणाम होना भारतीय संस्कृति में स्त्री को सर्वशक्ति-सम्पन्नता एवं अपेक्षित था। सात्त्विकता, मनुष्य के जीवन को सरल, निरविकार, सर्वगुण-सम्पन्नता के प्रतीक के रूप में आख्यायित किया गया चारित्रसम्पन्न और नैतिकतावादी बनाती है। यह संदेश ऐसे है। उसे पुरुष की पूर्णता के लिए आवश्यक माना गया है। समय आया जब समाज नैतिक रूप से पतित हो रहा था, मनुष्यों पुरुष के जीवन में स्त्री का आगमन शुभ, सुख-समृद्धि तथा
* बालाजी विहार कॉलोनी, गुड़ी गुड़ा का नाका, लश्कर, ग्वालियर - ४७४००१