Book Title: Sramana 1996 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ : १५ पर विष्णु मुनि अपने पूर्व रूप में आ गये। प्रजा ने राजा को बंदी बनाकर उसके पुत्र को राजगद्दी पर बिठा दिया। अहिंसावादी जैन परम्परा में नमुचि को दंड स्वरूप देश से निर्वासित कर दिया गया। वैदिक पुराणों में भी विष्णु और बलि की कथा कहते हुए कहा गया है कि बलि का आतिथ्य स्वीकार करके वामन ने तीन पग भूमि माँगी थी। बलि ने संकल्प करके तीन पग भूमि दे दी। वामन ने त्रिविक्रम नाम से विराट रूप धारण करके एक पग से सम्पूर्ण पृथ्वी और दूसरे से स्वर्ग को नाप दिया। जब तीसरा पद उठाया तो नापने के लिये कुछ बचा ही नहीं था। उसी समय जाम्बवान ऋषिराज ने भगवान् के विराट रूप की प्रदक्षिणा की तथा सभी दिशाओं में भगवान् के उपस्थिति की घोषणा की। इसी प्रकार परदारगमन की कथा कहते हुए कहा गया है कि इन्द्रकेतु का पुत्र वासव स्त्रीलोलुप था। वह गौतम ऋषि के परोक्ष में उनकी पत्नी विष्टाश्रव मेनका की पुत्री अहिल्या को गौतम के आश्रम में देखकर उस पर आसक्त हो गया। वह उसके साथ सम्भोग में तल्लीन था तभी फल-फूल और समिधा लेकर गौतम ऋषि आ गये। ऋषि को देखकर वासव डर गया और बैल का रूप धारण कर लिया, किन्तु गौतम सब जान गये। उन्होंने उसे (वासव को) मार दिया।३ वैदिक परम्परा के अनुसार इन्द्र अहिल्या के पास आया था। ऋषि ने इन्द्र को शाप दे दिया और अहिल्या को भी शाप से पत्थर बना दिया। आचार्य ने तापस जमदग्नि ऋषि का उल्लेख किया है जिसकी दाढ़ी में घोंसला बना कर रहने वाले पक्षियों ने सन्तान परम्परा का उच्छेद करने के कारण ऋषि को पापी कहा। पक्षियों के वार्तालाप से प्रेरित होकर ऋषि ने राजकन्या से शादी कर ली। एक बार कन्या के पिता राजा जितशत्रु पुत्र कामना से ऋषि के पास आये। ऋषि ने दो चरुक मंत्र दिये, एक उसकी पत्नी रेणुका के लिये दूसरी उसकी माँ के लिए। रेणुका की माँ ने सोचा ऋषि ने अवश्य पुत्र के लिए विशिष्ट चरुक दिया होगा, उसने अपनी पुत्री के चरुक से अपना चरुक बदल लिया। यथा समय रेणुका ने परशुराम को जन्म दिया। एक बार राजा अनन्तवीर्य ने गायों के साथ रेणुका का अपहरण कर लिया। परशुराम ने मंत्रित फरसा लेकर राजा का वध करके अपनी माँ को छुड़ा लिया। जब अनन्तवीर्य के पुत्र कार्तवीर्य को पता चला तो उसने जमदग्नि को मार दिया। पिता की मृत्यु सुनकर परशुराम ने कार्तवीर्य को मार दिया। क्रोध में आकर उसने सात बार पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित किया। कार्तवीर्य के पुत्र सुभौम ने २१ बार पृथ्वी को ब्राह्मणों से रहित किया। . अथर्ववेद की उत्पत्ति का उल्लेख करते हुए कहा गया है, सांख्य शास्त्र के कुशल सुलसा परिव्राजिका और त्रिदंडी याज्ञवल्क्य के संसर्ग से पिप्पलाद उत्पन्न हुआ था जिसने मातृमेध, पितृमेध और अभिचार मंत्रों से युक्त अथर्ववेद की रचना की थी। नारद और पर्वतक के आख्यान में कहा गया है कि आचार्य क्षीरकदम्ब वसु, पर्वतक और नारद तीन शिष्यों को आयुर्वेद पढ़ाते थे। एक बार तीनों शिष्यों की परीक्षा के लिये एक-एक बकरा दिया गया और उन्हें ऐसे स्थान पर वध करने के लिये कहा गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130