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श्रमण / अप्रैल-जून/ १९९६
इस गच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
अनुयोगद्वारवृत्ति
संस्कृत भाषा में ५९०० श्लोकों में निबद्ध यह कृति मलधारी हेमचन्द्रसूरि की रचना है। इसकी प्रशस्ति' में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
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जयसिंहसूरि T
अभयदेवसूरि
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हेमचन्द्रसूरि (अनुयोगद्वारवृत्ति के रचनाकार)
हेमचन्द्रसूरि विरचित विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति के अन्त में भी यही प्रशस्ति मिलती है। उनके द्वारा रचित आवश्यकप्रदेशव्याख्यावृत्ति, आवश्यक टिप्पन, शतकविवरण, उपदेशमालावृत्ति आदि रचनायें मिलती हैं, जिनके बारे में आगे यथास्थान विवरण दिया गया है।
धर्मोपदेशमालावृत्ति
मलधारी हेमचन्द्रसूरि के शिष्य विजयसिंहसूरि ने वि० सं० १९९१ / ई० सन् १९३५ में उक्त कृति की रचना की। इसकी प्रशस्ति में वृत्तिकार ने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है :
जयसिंहसूरि
अभयदेवसूरि
हेमचन्द्रसूरि
विजयसिंहसूरि (वि० सं० १९९१ ई० / सन् १९३५ में धर्मोपदेशमालावृत्ति के रचनाकार)
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मुनिसुव्रतचरित
यह प्राकृतभाषा में इस तीर्थङ्कर के जीवन पर लिखी गयी एकमात्र कृति है जो मलधारि गच्छ के प्रसिद्ध आचार्य श्रीचन्द्रसूरि द्वारा वि० सं० १९९३ / ई० सन् ११३७ में । रची गयी है। इसकी प्रथमादर्श प्रति आचार्य के गुरुभ्राता विबुधचन्द्रसूरि द्वारा लिखी गयी। ग्रन्थ की प्रशस्ति में ग्रन्थकार ने अपनी गुरु- परम्परा के साथ अपने गुरुभ्राता के इस सहयोग का भी उल्लेख किया है :
जयसिंहसूरि I
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