Book Title: Sramana 1996 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 128
________________ श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ : १२७ हॉस्पिटल, सूरत, १०. श्रीमती मोतीबेन भीखाचन्द जनता हॉस्पिटल, पाटन, ११. क्लॉथ मार्केट हॉस्पिटल, इन्दौर, १२. अनेक पशु चिकित्सालय, १३. अनेकों नेत्र चिकित्सा कैम्प, टी० बी०, ऑर्थोपेडिक एवं जनरल मेडिकल कैम्पों का प्रतिवर्ष देश के विभिन्न भागों में सफल आयोजन। सेवा का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है जो श्री गार्डी साहब से अछूता हो। आपके एक पुत्र डॉ० रश्मिकान्त ( स्त्रीरोग विशेषज्ञ ) अमेरिका में प्रैक्टिस कर रहे हैं। दूसरे लड़के हंसमुख जी यू० के० में सॉलिसिटर हैं। __ श्री गार्डी साहब की सोच है कि प्रत्येक जीवित प्राणी चाहे वे छोटे हों या बड़े उन्हें शान्तिपूर्वक जीने का अधिकार है। जो मेरा है वह सत्य हो सकता है लेकिन जो सत्य है वह मेरा होना चाहिए। भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से शौरसेनी प्राकृत पुरस्कार शौरसेनी प्राकृत भारतवर्ष की प्राचीनतम साहित्य की एवं जनसम्पर्क की भाषा रही है। इसीलिए जैनाचार्यों ने इस भाषा के माध्यम से अपने गवेषणापूर्ण विचारों और लोकहितकारी सन्देशों को चिरकाल से प्राणिमात्र के लिए प्रेषित किया है। परमपूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज की प्रेरणा से उक्त शौरसेनी प्राकृत भाषा के विषय में व्यापक शोधकार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए 'भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट' द्वारा कुन्दकुन्द भारती शोध-संस्थान के तत्त्वावधान में प्रति वर्ष ग्यारह हजार रुपये की राशि का एक वार्षिक पुरस्कार इस विद्या के क्षेत्र में कार्य करने वाले विद्वान को दिया जायेगा। इस सम्बन्ध में विशेष परिचय, नियमावली एवं आवेदन पत्र आदि प्राप्त करने के लिए निदेशक, कुन्दकुन्द भारती शोध संस्थान, १८-बी, स्पेशल इन्स्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली - ११० ०६७ से सम्पर्क किया जा सकता है। लाला श्री खैरायती लाल जी जैन दिवंगत बीसवीं शताब्दी के एक दानवीर, धर्मपरायण, कर्मनिष्ठ एवं सेवाभावी श्रावक दिल्ली निवासी लाला खैरायती लाल जी जैन का दि० २०-३-९६ को ९५ वर्ष की आयु में निधन हो गया। आप भगवान् महावीर के सच्चे पुजारी तथा पंजाब केशरी जैनाचार्य स्व० श्री विजयवल्लभसूरि जी महाराज के परम अनुयायी थे। लाला खैरायती लाल जी का जन्म सन् १९०२ में धर्ममूर्ति लाला नरपतराय एवं राधा देवी के परिवार में हुआ था जो जेहलम ( पाकिस्तान ) के रहने वाले थे। स्कूली शिक्षा ग्रहण कर १२-१३ वर्ष की आयु में ही अपने पिता के साथ सन् १८७६ से चल रहे व्यापार में शामिल हो गए थे। अठारह वर्ष की आयु में ही आप परिणय सूत्र में बँध गये। लाला जी एक कुशल व्यापारी थे। देश-विभाजन के समय परिवार सहित दिल्ली में आ बसे और १९४९ में रबड़ उद्योग में पदार्पण किया। आपने अपने जीवनकाल में अनेक मंदिरों के भूमिपूजन, शिलान्यास एवं प्रतिष्ठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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