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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ :
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विषयक ग्रन्थ है। वि० सं० १२८२ में इन्होंने अपनी उक्त कृति पर वृत्ति की रचना की जो ४५०० श्लोक परिमाण है।३५ इसके अतिरिक्त विवेककलिका, विवेकपादप, वस्तुपाल की क्रमशः ३७ और १०४ श्लोकों की प्रशस्तियाँ६ तथा वस्तुपाल द्वारा निर्मित गिरनार स्थित आदिनाथ जिनालय के वि० सं० १२८८ के एक शिलालेख का पद्यांश भी इन्हीं की कृति है। राजशेखरसूरि
राजशेखरसूरि मलधारी नरेन्द्रप्रभसूरि के पट्टधर पद्मतिलकसूरि के प्रशिष्य तथा श्रीतिलकसरि के शिष्य थे। न्यायकंदलीपंजिका (वि० सं० १३८५/ई० सन् १३२९); प्राकृतद्वयाश्रयवृत्ति (वि० सं० १३८६/ई० सन् १३३०) तथा प्रबन्धकोश८ अपरनाम चतुर्विंशतिप्रबन्ध (वि० सं० १४०५/ई० सन् १३४९) इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इनके अतिरिक्त इन्होंने स्याद्वादकलिका, रत्नकरावतारिकापंजिका, कौतुककथा और नेमिनाथफागु की भी रचना की।३९ वि० सं० १३८६ से वि० सं० १४१५ तक इनके द्वारा प्रतिष्ठापित ५ उपलब्ध जिनप्रतिमाओं का पूर्व में उल्लेख किया जा चुका है।
इनके शिष्य सुधाकलश द्वारा रचित दो कृतियाँ मिलती हैं, इनमें प्रथम हैं संगीतोपनिषद्सारोद्धार जो वि० सं० १४०६/ईस्वी सन् १३५० में रचा गया है। इसकी प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह ग्रन्थकार द्वारा वि० सं० १३८०/ई० सन् १३२४ में लिखी गयी संगीतोपनिषद् का संक्षिप्त रूप है। ५० गाथाओं में रचित एकाक्षरनाममाला इनकी दूसरी उपलब्ध कृति है।
सन्दर्भ १. Muni Punya Vijaya : Catalogue of Palm Leaf Mss in the Shanti
Natha Jaina Bhandara, Cambay, Vol. I, G. O. S. No. 135,
Baroda, 1961 A. D., pp. 66-67. P. P. Peterson : Fifth Report of Operation in Search of Sanskrit Mss
in the Bombay Circle, Bombay 1896 A. D., pp. 88-89. C.D. Dalal : A Descriptive Catalogue of Manuscripts In the Jaina Bhandars at Pattan, Vol. I, G.O.S.No. LXXVI, Baroda 1937 A. D., pp. 311-313. मुनिसुव्रतस्वामिचरित, संपा० पं० रूपेन्द्रकुमार पगारिया, लालभाई दलपतभाई
ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक १०६, अहमदाबाद १९८९ ईस्वी, पृष्ठ ३३७-३४१ । ४. सुपासनाहचरिय, संपा० पं० हरगोविन्ददास, जैन विविध साहित्य शास्त्रमाला,
ग्रन्थांक १२, बनारस १९१८ ई०, प्रशस्ति। 4. Muni Punya Vijaya : Catalogue of Palm-Leaf Mss in the Shanti
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