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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६
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तान्त्रिक आगमिकदर्शन के आयामे
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| पार्श्वनाथ विद्यापीठ में तांत्रिक एवं आगमिक साहित्य के आयाम विषय पर संगोष्ठी ।
आयोजित चार दिवसीय अखिल भारतीय संगोष्ठी के तीसरे दिन दि० १६/३/९६ के दो सत्र पार्श्वनाथ विद्यापीठ में आयोजित किये गये। संगोष्ठी का विषय था --- 'जैन एवं बौद्ध धर्म में तन्त्र। संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रकाण्ड विद्वान् प्रो० देवराज ने की। इस सत्र का संचालन विद्यापीठ के उपनिदेशक प्रो० सुरेन्द्र वर्मा ने किया। इस सत्र में प्रो० सागरमल जैन के अतिरिक्त विद्यापीठ के वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ. अशोक कुमार सिंह; डॉ० नन्दलाल जैन, रीवा; अजितप्रसाद जैन, ग्वालियर; मनोरमा जैन, ग्वालियर; श्री एस० एम० जैन ( अभियन्ता ); डॉ० कमलेश कुमार जैन; डॉ० फूलचन्द जैन 'प्रेमी'; डॉ० रज्जनकुमार; ब्रह्मचारी श्री वासुपूज्य जी आदि विद्वानों के शोधपत्रों का वाचन हुआ। लालभाई दलपतभाई संग्रहालय, अहमदाबाद के असिस्टेण्ट क्यूरेटर श्री ललित कुमार जी द्वारा फैक्स से भेजे गये शोधपत्र को अत्यन्त प्रभावशाली रूप में विद्यापीठ के प्रवक्ता डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय ने प्रस्तुत किया। इस अवसर पर तंत्रविद्या के अनेक शीर्षस्थ विद्वान् उपस्थित थे। आगन्तुक विद्वानों ने विद्यापीठ की स्थायी चित्रकला प्रदर्शनी, बृहद् पुस्तकालय, उसमें संग्रहीत अनेक दुर्लभ पाण्डुलिपियों, प्रकाशित ग्रन्थों, परिसर स्थित विभिन्न भवनों आदि का अवलोकन करते हुए यहाँ की शैक्षणिक गतिविधियों और इन सभी के सूत्रधार प्रो० सागरमल जैन और उनके युवा सहकर्मियों की भूरि-भूरि प्रशंसा की। विद्यापीठ के प्राकृत भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो० सुरेशचन्द्र पाण्डे ने इस अवसर पर
आगन्तुक विद्वानों के सम्मान में प्राकृत भाषा में स्वागत भाषण दिया। प्रो० कमलेशदत्त त्रिपाठी ने इस संगोष्ठी में पढ़े गये शोध-पत्रों की समीक्षा करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत किया। इस सत्र में पठित लेखों का विवरण इस प्रकार है - ___ मंगलाचरण - (क) उवसग्गहर स्तोत्रपाठ, (ख) बृहदशान्ति स्तोत्रपाठ, For Private & Personal Use Only
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