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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६
"मिथ्यात्वी रागादि रूप परिणत बहिरात्मा। बीतराग भावों से परिणत अंतरात्मा।। भाव द्रव्य नो कर्मों से विरहित परमात्मा।
देहमान जो मूढ़ वही प्राणी बहिरात्मा।।" तत्त्वमीमांसी समस्याओं के समाधानों को सरल एवं सुरुचिपूर्ण भाषा में प्रस्तुत करके पवैया जी ने सामान्य पाठकों का बड़ा ही उपकार किया है। इससे विद्वानों को समुचित लाभ होगा। पुस्तक के प्रारम्भ में पूजनविधि का विवेचन भी बहुत उपयोगी है। इसके लिए श्री पवैयाजी को बधाई है। इसके प्रकाशक का प्रयास भी सराहनीय है। पुस्तक की छपाई साफ-सुथरी है। इससे सामान्य एवं विद्वान पाठक दोनों ही लाभान्वित होंगे और इसका स्वागत करेंगे।
- डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा
पुस्तक : प्रथम कर्मग्रंथ कर्म विपाक, लेखिका-सम्पादिका : साध्वी श्री हर्षगुणाश्रीजी, प्रकाशक : श्री ॐकार साहित्य निधि द्वारा पार्श्वभक्तिनगर, हाइवे, भीलही, बनास काँठा।
प्रथम कर्मग्रन्थ कर्मविपाक के रचयिता देवेन्द्रसूरि महाराज हैं। इसका विस्तार पूर्वक विवेचन साध्वी श्री हर्षगुणाश्रीजी ने किया है। इसके मुख्य विभाग हैं - कर्म बोधपीठिका, ज्ञानप्रकरण, कर्मविपाक, कर्मबन्धन के हेतु तथा प्रश्नोत्तरी। कर्मबोध पीठिका में कर्म सिद्धान्त का महत्त्व, कर्मसिद्धि, कर्मवाद, कर्मस्वरूप, जीव और कर्म का सम्बन्ध तथा कर्मसिद्धान्त की आवश्यकता। कर्मवाद शीर्षक के अन्तर्गत भारतीय दर्शन की शाखाओं में प्रतिपादित कर्म सम्बन्धी मान्यताओं के विवेचन हैं - जैसे बौद्ध दर्शन, योग दर्शन, सांख्य दर्शन, न्याय तथा वैशेषिक दर्शन एवं मीमांसा दर्शन। कर्मसिद्धान्त को स्पष्ट करने के लिए बहुत से रंग-बिरंगे चित्र दिये गये हैं - १. पुद्गल द्रव्य, २. कर्मग्रहणानी प्रक्रिया चित्र, ३. कर्म-प्रकार, चित्र, ४. ज्ञानावरणीय कर्म के भेद दर्शन चित्र, ५. दर्शनावरणीय कर्म के भेद-दर्शन चित्र, ६. अन्तरकरणानी प्रक्रिया दर्शन चित्र, ७. उपशम सम्यक्त्व प्राप्ति दर्शन चित्र, ७. उपशम सम्यक्त्व प्राप्ति दर्शन चित्र, ८. मोहनीय कर्म भेद दर्शन चित्र, ९. आयुष्य स्थिति दर्शन यंत्र, १०. आनुपूर्वी दर्शन चित्र, ११. कर्म वृक्ष आदि। इन चित्रों से विषय की स्पष्टता बढ़ जाती है और पाठक के लिए गूढ़ विषय भी सरल हो जाते हैं। साध्वीजी की यह रचना महत्त्वपूर्ण एवं सराहनीय है। चित्रों के कारण इसकी विशेषता और बढ़ गयी है। पुस्तक की छपाई साफ है, बाह्य रूपरेखा आकर्षक है। आशा है, पाठक उसे पसन्द करेंगे। इसके कार्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक बधाई के पात्र
हैं।
- डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा
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