Book Title: Sramana 1996 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 113
________________ साहित्य समीक्षा पुस्तक : चिन्तन की मनोभूमि, लेखक : उपाध्याय अमरमुनि, सम्पादक : शास्त्री पं० विजयमुनि, प्रकाशक : सन्मति ज्ञानपीठ, लोहामण्डी, आगरा – २, पृष्ठ : ५३९, मूल्य : रु० १२५ मात्र। चिन्तन की मनोभूमि को सन् १९७० में देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ था, जब इसका प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ था। पुन: उसकी समालोचना लिखने के लिए मुझे कहा गया है, यह एक विचित्र संयोग है। इस पुस्तक में उपाध्याय अमरमुनि जी के सारगर्भित निबन्धों को संकलित किया गया है। समकालीन जैन दार्शनिकों की प्रथम पंक्ति में उपाध्याय अमरमुनि जी का नाम आता है। उनकी ज्ञान-विधाएँ जैन धर्म-दर्शन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों में भी उनकी गहरी पैठ देखी जाती है। वे रूढ़िवादिता से दूर एक प्रगतिशील चिन्तक थे। उनकी प्रगतिवादिता ने जैन समाज को नई दिशा दी है, जो उनकी रचनाओं से ज्ञात होता है, किन्तु सम्प्रदायगत खींचातानी ने उनके पैर भी खींचने से अपने को नहीं रोका। उपाध्याय पद पर ही उनका स्वर्गवास हुआ, किन्तु अपने जीवनकाल में अपनी विलक्षण सूझबूझ एवं उदार मानसिकता से उन्होंने कई सुयोग्य व्यक्तियों को आचार्य पदों पर आसीन किया। अंग्रेजी की यह कहावत उन पर शत-प्रतिशत लागू होती है - He was not a king but a kingmaker. इस ग्रन्थ के प्रधानत: तीन विभाग हैं - १. दार्शनिक दृष्टिकोण, २. धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण तथा ३. सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टिकोण। प्रथम विभाग में जीव और जगत् : आधार एवं अस्तित्व, मन : एक सम्यक् विश्लेषण, आत्मा का विराट रूप, अरिहन्तत्व : सिद्धान्त और स्वरूप, अवतारवाद-उत्तारवाद, जैन दर्शन की समन्वय-परम्परा, प्रमाणवाद, नयवाद आदि निबन्ध हैं। आत्मा का विराट रूप बताते हुए उपाध्याय अमरमुनिजी ने “एगे आया' के साथ-साथ “एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति' तथा “सियाराम मय सब जगजानी। करऊँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।" के भी उल्लेख किये हैं। यह उनकी उदारता एवं समन्वयात्मकता को सूचित करता है। दूसरे विभाग में धर्म : एक चिन्तन, भक्ति कर्म ज्ञान, धर्म तत्त्व, साधना मार्ग, जीवन में सुख का विकास, कल्याण का मार्ग, जैन संस्कृति की अमर देन - अहिंसा, अहिंसा - विश्वशान्ति की आधारभूमि, सत्य का विराट रूप, सर्वधर्म समन्वय आदि निबन्ध हैं। धर्म का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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