Book Title: Sramana 1996 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 41
________________ ४० : श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ इसका एक नाम कथारत्नाकर भी मिलता है। जैनधर्म सम्बन्धी कथानक सुनने की महामात्य वस्तुपाल की उत्कण्ठा को शान्त करने के लिए नरचन्द्रसूरि ने इसकी रचना की। इस कृति की वि० सं० १३१९/ई० सन् १२५३ की लिखी गयी ताड़पत्र की एक प्रति पाटन के संघवीपाडा ग्रन्थ भण्डार में संरक्षित है। नरचन्द्रसूरि महामात्य वस्तुपाल के मातृपक्ष के गुरु थे। उनके द्वारा रचित प्राकृतदीपिकाप्रबोध, अनर्धराघवटिप्पन, ज्योतिषसार आदि कई अन्य कृतियाँ भी मिलती हैं। वस्तुपाल के गिरनार के दो लेखों के पद्यांश भी नरचन्द्रसूरि द्वारा रचित हैं और वस्तुपालप्रशस्ति भी इन्हीं की कृति है। अलंकारमहोदधि महामात्य वस्तुपाल के अनुरोध एवं मलधारी आचार्य नरचन्द्रसूरि के आदेश से उनके शिष्य नरेन्द्रप्रभसूरि ने वि० सं० १२८० में अलंकारमहोदधि तथा वि० सं० १२८२/ई० सन् १२२६ में इस पर वृत्ति की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है : अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि श्रीचन्द्रसूरि मुनिचन्द्रसूरि देवानन्दसूरि देवप्रभसूरि यशोभद्रसूरि नरचन्द्रसूरि नरेन्द्रप्रभसूरि (वि० सं० १२८२/ई० सन् १२२६ में अलंकारमहोदधिवृत्ति के रचनाकार) न्यायकंदलीपंजिका यह हर्षपुरीयगच्छ के प्रसिद्ध आचार्य राजशेखरसूरि द्वारा वि० सं० १३८५/ई०. सन् १३२९ में रची गयी है। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने लम्बी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है: अभयदेवसूरि हेमचन्द्रसूरि Jain Education International GIR For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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