Book Title: Sramana 1996 04
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 19
________________ श्रमण / अप्रैल-जून/ १९९६ के लोभ में फँसे हुए, मोक्ष के साधनों की उपेक्षा कर सांसारिक विषयों में लीन व्यक्ति से की गयी है, जो अन्त में पश्चाताप को ही प्राप्त होता है।" गणिका के पास आने वाले ग्राहकों का सत्कार, सम्मान के लिए गणिका से स्मृतिचिह्न के रूप में आभूषणों के उपहार स्वीकार करने वालों में एक रत्नों के पारखी द्वारा गणिका का पादपीठ माँगने के दृष्टान्त में अध्यात्म मार्ग पर चलने वाले पथिक की तुलना रत्नों के पारखी वणिक से की गई है। कहा गया है कि दिव्य सुख भोगने वाले ग्राहक राजपुत्र हैं, गणिका धर्मश्रुति की प्रतीक है, गणिका के आभूषण व्रत, तप, त्याग के प्रतीक हैं, रत्नपरीक्षा की कुशलता सम्यग्ज्ञान है एवं रत्न का व्यापार महासुख है । " १८ : गर्भवास दुःख के प्रसंग में ललितांगद के दृष्टान्त में परपुरुष में आसक्त रानी का दासी द्वारा संकेत देकर पर पुरुष को बुलाकर अपने आवास में रखना, राजा को संदेह होने पर अन्त: पुर में राजपुरुषों द्वारा छानबीन करवाना, रानी का ललितांगद को शौचालय ( संडास ) से जाने वाले नाले में छुपा देना, नाले से बाहर निकलने पर रोगी ललितांगद की धायमाता द्वारा सेवाशुश्रूषा करके स्वस्थ करना । ललितांगद जीव का प्रतीक है, रानी के दर्शन से सम्बद्ध समय, मनुष्य जन्म का प्रतीक है, दासी इच्छा का प्रतिरूप है। रानी के आवासगृह में ललितांगद का प्रवेश विषय सम्प्राप्ति का प्रतीक है। राजपुरुष रोग, शोक, भय, शीत, उष्ण आदि ताप के प्रतिरूप हैं, शौचालय से निकलना प्रसव का प्रतीक है और दाई देह पुष्टि देने वाली कर्मविपाक की प्रतीति करवाती है । इस दृष्टान्त का हरिभद्र ने भी उल्लेख किया है। मधुबिन्द दृष्टान्त जंगल में भटके हुए व्यापारी के पीछे जंगली हाथी लग गया, जान बचाता हुआ वह एक बरगद के पेड़ पर पहुँचा जिसकी जड़ें एक कुएँ में लटक रही थीं। वह जड़ों को पकड़ कर कुएँ में लटक गया। कुएँ के तल पर विशाल अजगर फुफकार रहा था। दीवारों के चारो ओर कुटिल सर्प डँसने को तैयार थे, काले और सफेद दो चूहे उस जड़ को काट रहे थे, जिस डाली को वह पकड़े हुआ था। हाथी सूँड़ से उसे पकड़ने का प्रयत्न कर रहा था। पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता लगा था, हाथी के पेड़ को झझोड़ने से छत्ते से शहद टपकने लगा। शहद की बूँद उसके मुँह में भी पड़ी, वह उसके स्वाद में मदमस्त हो गया। इस दृष्टान्त में मधु का आकांक्षी पुरुष संसारी जीव है, जंगल संसार का प्रतीक है, बनैला हाथी मृत्यु का, कुआँ देवभव और मनुष्यभव का, अजगर नरक और तिर्यञ्च गति का, सर्प क्रोध, मान, माया, लोभ का, बरगद की जड़ जीवनकाल का, चूहे कृष्ण और शुक्ल पक्ष के पेड़ कर्मबन्धन रूप अज्ञान का, मधुबिन्दु इन्द्रिय विषय तथा भौरे विभिन्न व्याधियों के प्रतीक हैं। २१ इस दृष्टान्त का आवश्यकचूर्णि और समराइच्चकहा में भी उल्लेख हुआ है। > --- कौवे और हाथी का दृष्टान्त एक मृत हाथी के शरीर को भेड़ियों और सियारों ने खाना शुरू किया। कुछ कौवे भी उसी रास्ते से हाथी के पेट में चले गये। गर्मी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International ―

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