________________
श्रमण/अप्रैल-जून/१९९६ :
२९
परनारी को पाने हेतु षड्यन्त्र रचने वाले पुरोहित को सबक सिखाने के लिये पुष्पदेव ने उसकी समूची देह पर मोम लगा कर उस पर रूई चिपका दी और अनेक पंख लगाकर उसे पक्षी का रूप देकर राजा के सामने प्रस्तुत किया। उसके शरीर में लोहा चुभा दिया ( किं जल्पं किं जल्पं ) क्या बोलूँ, वह इस प्रकार बोलने लगा। राजा के सामने उसका भेद खुला तो वह सारी सभा का उपहास-पात्र बन गया।५९
___ वीररस की अभिव्यंजना के लिये तदनुकूल ध्वनिसूचक शब्दों से वैसा वातावरण पैदा किया गया है। युद्ध का वर्णन करते हुये वीररस का प्रभावशाली प्रतिपादन किया गया है। मेरा बहुबल ही मेरा परिचय देगा इस प्रकार गर्वित वचन बोलता हुआ वसुदेव युद्ध के लिये तैयार हो गया। विविध आयुधों से भरे तथा फहराती हुई ध्वजाओं वाले रथ दौड़ने लगे, शंख फूके जाने लगे, हाथी एक दूसरे से टकराने लगे, घोड़ों के भागने से उठती हुई धुंध आखों में पड़ने लगी। कुछ योद्धाओं द्वारा छोड़े गये बाणों से सूर्य की रश्मियाँ आच्छादित हो गई, वसुदेव अकेला ही बहुतों के सामने डटा रहा, धनुष से छूटते हुए बाणों को वसुदेव अपने बाणों से काट रहा था। किसी का मुकुट ही कट गया, किसी का रथ छिन्न-भिन्न हो गया, किसी के अस्त्र-शस्त्र कट गये। मैं तुम्हारा विनाश करता हूं, क्षणभर ठहरो, इस प्रकार बोलते हुए योद्धाओं की अहंकारयुक्त आवाजें गूंजने लगीं। जो पीठ दिखायेगा मार दिया जायेगा, इस प्रकार की चेतावनी देकर सेना को युद्ध से पीछे हटने के लिये हतोत्साहित किया जा रहा था। लड़ने वालों को प्रीतिपूर्वक उत्साहित किया जा रहा था। स्वामी की ललकार से सैनिक दुगुने उत्साह से लड़ने लगते थे। त्रिपृष्ट की वज्रपात के समान ध्वनि को सुनकर कुछ काम रूप विद्याधर चिल्लाते हुए भाग गये, कुछ कायर पकड़े गये, कुछ के शस्त्र गिर गये, कुछ परकटे पक्षी की भाँति धरती पर लुढ़क गये। इस प्रकार शारदीय जल की भाँति अपनी सेना को आनन्दित कर दिया। त्रिपृष्ट की सेना विजयश्री की ओर बढ़ने लगी। सिंह को छोड़कर खरगोश की तरह क्यों छिपे हो, यदि राज्य प्राप्ति की इच्छा है तो एक रथ पर अकेले मेरे से युद्ध करो, मेरी शरण में आ जाओ, इस प्रकार की गर्वोक्तियों से एक दूसरे को उत्तेजित करते हुए चक्र से शत्रु का सिर कट जाने पर विद्याधर डर से भागने लगे। त्रिपृष्ट ने हारे सैनिकों को आश्वासन दिया, अभय दान दिया, यथोचित सम्मान करते हुए कहा कि मेरी भुजाओं में रक्षित आप अपने-अपने राज्यों में सुखपूर्वक रहें।६० युद्ध की समाप्ति अनेक विवाहों में परिणित होती है, चूंकि विवाह युद्ध के परिणामस्वरूप हैं इस प्रकार वीर रस को श्रृंगार की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया गया है।
भूतों राक्षसों के उल्लेख, बलि के लिए वसुदेव को देवी शंकुका के पास ले जाना, वध की तैयारियाँ करना, ऋषिदत्ता को वध के लिये करवीर की माला पहना कर घुमाना, प्रद्युम्न द्वारा भानु के विवाह की तैयारियों में विकृतियाँ उत्पन्न करना आदि प्रसंग वीभत्स रस की योजना करते हैं। For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International