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सिरि भूवलय
नव भारत में प्रख्यात कर्नाटक में विस्तृत रूप से कर्म को कहे गए उनका अंक काव्य भूवलय है । भुवन विख्यात भूवलय है ।
इस प्रकार कुमुदेन्दु मुनि द्वारा दिए गए विवरणों का परिशीलन करें तो 'सेन गण-ज्ञात वंश, सदधर्म गोत्र, श्री वृषभ सूत्र, द्रव्यांग शाखा, इक्ष्वाकु वंश', इन वंशो में जन्म लेकर सेन गणों में अवतार लेकर नवगण गच्छों को व्यवस्थित करने वाले, ये, मान्य खेट के(आज का मालखेड ) राजा राष्ट्र कूट के अमोघ वर्ष ने कर्नाटक चक्रवर्ती को विस्तृत रूप से कर्म सूक्ष्म को केवल इस विश्व काव्य भूवलय के द्वारा बोध कराया ऐसा कह सकते हैं।
कुमुदेन्दु गुरु परम गुरु के रूप में जो सर्वज्ञ कहे जाते हैं अपने समय के पूर्वे ग्रंथ काव्य मंगल प्राभृत भूवलयों को गणित पध्दति के अनुसार समझने वाले श्री वीर सेना चार्य का नाम लेते हैं। कुमुदेन्दु मुनि स्वयं को जिनसेना चार्य का तनुविन जन्मद घन पुण्य वर्धन वस्तु ( तन-मन से जन्मों से प्राप्त पुण्य का फ़ल) कहते हैं और प्रथम वीरसेनाचार्य को आदर सम्मान देकर तत्पश्चात जिनसेनाचार्य को अपना आदर सम्मान सौंपते हैं।
कुमुदेन्दु मुनि, अपने परम गुरु वीर सेनाचार्य की सम्मति से इस सर्व भाषामयी कर्नाटक काव्य में वीर सेना से पूर्व के गुरु परंपरा को इस प्रकार लिखते हैं: प्रथम गणधर, वृषभ सेन, केसरी सेन, वज्रचामर, चारू सेन, वज्र सेन, आदत्तसेन, जलज सेन, दत्त सेन, विदर्भ सेन, नाग सेन, कुन्धु सेन, धर्म सेन, मंदर सेन, जय सेन सद्धर्म सेन, चक्र बंध, स्वयं भू सेन, कुंभ सेन विशाल सेन, मल्ली सेन, सोम सेन, वरदत्त मुनि, स्वयं भारती, इन्द्र भूति विप्र, आदि, गुरु परंपरा के २४ गुरुओं में से वायु भूति, अग्नि भूति, सुधर्म सेन, आर्य सेन मुंडी पुत्र, मैत्रेय सेन, अकंपन सेन, अंधर गुरु आदि महनीय बनें और आगे इनके साथ अंतिम महात्मा, प्रभाव सेन नाम के हर शिव शंकर गणितज्ञ वाराणसी में वाद-विवाद में जय प्राप्त कर गणितांक रूप का पाहुड नाम के ग्रंथ की रचना कर दूसरे गणधर नाम के प्रशस्ति के पात्र बनें, ऐसा कहते हैं ( अ - १३-५०-८७-९८-११९)
गुरु परंपरा के इस भूवल्य में आगे चलकर “पसरिप कन्नाडी नेडेयर पिसुनाते येळिद कन्नडिगर कसवर नाडिनोळ चलिपर नाम के इस कन्नड सेन गणों के द्वारा
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