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सिरि भूवलय
नूतन परिष्करण की प्रस्तावना
(अक्षरस्थ परिष्करण के साहित्य के आधार पर) संस्कृत, कन्नड साहित्य में कुमुदेन्दु नाम का प्रचलन
कुमुदेन्दु नाम अथवा उसका पर्याय रूप का प्रचलन कुछेक जैन यति और कवियों में होगा ऐसा कर्नाटक के शासनों से, ग्रंथ साहित्य की रचनाओं से ज्ञात हुआ है १. गुणभद्र से (सन् ९००) से बहुशः पहले रहे हुए कुमुद चंद्र नाम के अपरनाम
धेय सिध्द सेन दिवाकर ने कल्याण मंदिर स्त्रोत नाम का पार्श्वनाथ तीर्थंकर
से संबधित एक कृति (४४ पद्यों की) रचना की थी। २. माघनंदी सिध्दांत चक्रवर्ती के शिष्य चतुर्विद पांडित्य चक्रवर्ती भी रहे । वादि
कुमुद चंद्र नाम धारित ने (सु.११००) प्रतिष्ठा कल्प टिप्पण नाम के कन्नड
टीका की रचना की थी। ३. 'तत्व रन प्रदीप ' के कर्ता कन्नड कवि बाल चंद्र ने (स ११७०) अपने उस
ग्रंथ को कुमुद चंद्र भट्टारक देव नाम के लिए प्रति बोध नार्थ रूप से
रचित किया है कहते हैं (प्रकरणांत्य गद्य) ४. पार्श्व पंडित जी ने अपने पार्श्व नाथ पुराण नाम के कन्नड काव्य में (सन्
१२२२) पूर्व के गुरुपरंपरा का उल्लेख करते समय शुभ चंद्र नाम के बाद एक कुमुद चंद्र महामुनि नाथ को कुमुद चंद्र यति पति को (१-४५-४६) पीर नंदी नाम के साधु के गुरु, एक और कुमुद चंद्र मुनीन्द्र को (१-५३) स्मरण करने के साथ अपने साक्षात्गुरु एक और कुमुदेन्दु को
(१-९२) नाम दिया होगा लगता है। ५. कमल भवन (सु सन् १२३५) ने शांतीश्वर पुराण के कर्ता के उल्लेखानुसार
जय कीर्ति वतीन्द्र के बाद एक कुमुदेन्दु योगी का स्मरण करते हैं । आप को शिष्याग्रेस प्राप्त माघणंदी मुनीन्द्र हैं वहीं जानकारी देते हैं (१-१७)
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