Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan

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Page 469
________________ सिरि भूवलय कुमुदेन्दु को कुमुद चंद्र नाम भी दिया गया है। यही इस प्राकृत (?) गीता को निर्मित करने के कारण यापनीयक नहीं होंगें यापनीयकरों को जैनाभास, ऐसा अन्य दिगबंर ग्रंथों में कहा गया है। यहाँ यापनीयक आर्या(द्या) भस कह के कहा गया है। सिरि भूवलय में दिए गए भगवद् गीता प्राचीन जयख्यान गीता है ऐसा अंगीकार करने से पूर्व इन शंकाओं का समाधान देना होगा। ता.२७, २८, २९, दिसम्बर १९६० ८. अ. न. कृष्ण राय जी ४२ कन्नड साहित्य सम्मेलन मणिपाल, दक्षिण कन्नड जिला सिरि भूवलय धवळ के वीरसेन के जिनसेनाचार्य के शिष्य और मान्यखेट अमोघवर्ष के गुरु कुमुदेन्दु विरचित सिरि भूवलय ग्रंथ विश्व साहित्य में एक अद्भुत कृति है। कवि ईसा के उत्तरार्ध आठवीं सदी के हैं और उसी काल समय में उन्होंने इस कृति की रचना की होगी ऐसा संपादक पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी का और कर्लमंगलन श्रीकंठैय्या जी का अभिप्राय है। सिरि भूवलय एक ग्रंथ नहीं है। यह ग्रंथों का भंडार है इरुन भूवलयदोळेळनूरहदिनेन्ट भाषेगळवतार (भूवलय में ७१८ भाषाओं का अवतार है)। ऐसा स्वयं कवि का कहना है। नुणपाद (चिकना) दुण्डाद( गोल) एक बिन्दु को तोड कर उसकी सुन्दरता मे विघ्न ने होने की रीति में अनेक सुन्दर रूप में बना कर उन अनेकों में अक्षरों को समाहित कर विश्व में न कभी पहले था और न कभी आगे होगा ऐसी अपनी ही एक रीति को कवि ने प्रदर्शित किया है। आपकी सर्वभाषामयी भाषा को आप ही की एक भाषा है कहना होगा। अपनी काव्य भाषा सर्वभाषामयी कर्नाटक है कह, विश्व के भूत भविष्य और वर्तमान से संबंधित सभी भाषाओं के सभी ज्ञान को इस ग्रंथ राशी में गणित बद्ध रूप से समाहित किया गया है ऐसा भी कुमुदेन्दु कहतें हैं। नौ खंडों की इस ग्रंथ राशो का प्रथमखंड मंगलप्राभृत जिसमें ५९ अध्याय हैं। कन्नड, संस्कृत, प्राकृत तीन भाषाओं का कवि ने प्रयोग किया है । प्रथम खडं तथा शेष आठ खंड संग्रहित हैं।

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