Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan
View full book text
________________
सिरि भूवलय
सिरिभूवलय के पव प्रकटित मंगल प्राभृत के प्रथम भाग के ८२ पृष्ठ के अनुबंध १ द्वितीय खंड - श्रुतावतार प्रथम “स्" आ अध्याय के शेष
अंतराधिकार
१२२-१७०
ऐरिसिदन् काक्षरवम् यरडने सम्योगदोळागे त्रतर पाहुडगळनु थरद त् रिसम् योगदोळागे
णिरय निगोददन्कगळम्
छ्रितेयोळ् निर्मिसिदुदनु
छरवचरव
स्थिरदिरवम्
यरडर वर्ग सम्गुणदिम्
गरळ हारद विषदम्रुतम् ओरण दिरविनिम् पेळ्दर् सरसद चूलिके वरदिम् मरळिसि होरळीसिदन्क ओरिद्धियतिशय बुद्धि सरि पसियुवुवुहु' वरद वर ‘धरसेणो पर वा वरि 'इगओह दाणावर' तेरे ‘सिहो सिद्धन्तामि’
थर "य सागर तरन्ग' रस
।। १२२ ।।
॥ १२३ ॥
।। १२४ ।।
।। १२५ ।।
।। १२६ ।।
।। १२७ ।।
।।१२८ ॥
।।१२९ ।।
।। १३० ।।
।।१३१।।
।। १३२ ।।
।। १३३ ।।
।। १३४ ।।
।।१३५।।
॥१३६॥
।। १३७ ।।
।।१३८ ।।
।। १३९ ।।
सुर ‘सन्घाय धोयमणो'
नर सुर मनधौत जल
शुद्ध
दरुशिसिदवरात्म रोरववळिपत्रर्यरत्न लोरासराम्रुत पदवु एरडुवरे द्वीप तिरेय
बरेद भूवलयद मूल
न् लोकदष्टु भूवलय धरसिर्ध सिद्धान्कवलय करुणेयन् तिमद निर्देश हारदगर्द शिवलोक
ऐरिद जनर निवासम् यरडरेयद मानुषगिरि
त्रिसि कोट्टरुवन्क गिरि
तेरस गुणवडर्दन्क तेरिनन्दद समवस्रुति रर पुण्यान्कद भूमि विरचित मागध शग्लि
497
॥ १४० ॥
।। १४१ ।।
।। १४२ ।।
॥१४३॥ ॥१४४॥ || १४५ ।।
॥१४६॥
सरिसलु मागध देव मरुकळिसिद श्रुत ज्ञान वारुणिसिद द्वादशान्ग दिरितन्द गोचर वत्ति णीरसान्नवे सुसान्न होरिगळुगळिल् लदल्लि ई रीति उणुवरन्नवनु सुरसान्न पाहुडववर्गे दरुशन प्राप्तिये नमगे परिहरिसिरुव शन्केगळ्गे ॥१५०॥ रिरिसिरुवन्क भूवलय चिरजीवि एन्द भूवलय १७३-२१४
।। १४७ ।।
॥ १४८ ॥
।। १४९ ।।
।। १५१ ।।
।।१५८ ।।
।। १५९ ।।
॥ १६०॥
॥१६१॥
।।१६२॥
।।१६३॥
॥१६४ ।।
॥१६५॥
॥१६६॥
॥ १६७ ॥
।। १६८ ।।
।।१६९।।
।।१५२।।
|| १५३ || दाञागुडि इडे द्वादशान्जाउ || १७३।। णुञण व्रुद्धियक्रमदे
।। १५४ ।।
1189811
।। १५५ ।।
भूञ ' मञगल णिमित्त हेऊ' || १७५ ।। दाञगद 'परिणामम् णाम'
॥१५६॥
॥१७६॥
1124911
सञग 'तहय कत्तारम् वा'
।।१७७ ।।

Page Navigation
1 ... 498 499 500 501 502 503 504