Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan

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Page 498
________________ प नह दरशन शुद्धरनघर् ग् नियत ताळिका वस गवशील हदिनेनटु सहस्र [ल णिमादि विविधर्धिध नवरसुत श्रुत देव मुनदोळिल्लद देवि पोरेये मन सिम्हासन वेरिदवळे का पनि नील हणेगण्णिनवळे | सिरि भूवलय ॥९२॥ ॥९३॥ ॥९५॥ [देणिये जिनवाणि अम्दु सनय दुर्नयगळ पेऴ्दर् ॥९४॥ टणक प्रतिहारायान्गर् ठिणदे त्रयत्न त्रिभन्गर् य नगे त्रय्रत्नं त्रिभन्गर् मनविट्टु शरुतधररप्पर् चण भन्गदलि गुप्ति गुप्तर् ॥ ९९ ॥ तवात् मनभय वित्तवरु ॥९६॥ 118911 118611 ॥१००॥ म् नदाशेयळिदतिशयरु जाणरवरु क्षोणियलेवर् णणिय महाव्रत स पुष्प रससिद्ध रण कहळेय केळदवरु स नियदोळणुव्रत पोरेवर् मनसिजराद त्यागिळु य नगे भूवलय वेळ्दवरु मनविरदरुहु भूवलय् 495 ॥१०१॥ ॥ १०२ ॥ ॥१०३॥ ॥ १०४ ॥ ॥ १०५ ॥ ॥१०६ ॥ ॥ १०७ ॥ ॥ १०८ ॥ ।। १०९ ।। ॥११०॥ ।।१११ ।। ।।११२ ।। ॥११३॥ ।। ११४ ।। ।।११५ ॥ ॥ ११६ ॥ ॥११९॥ ॥१२०॥ ।।१२१ ॥ सु* दणाणवनु आ वर्गीकरणाद | मददे 'सयलगण पउम ' ॥ अदुष* दर्शनद 'रवणो विविहड्ढि । मुद 'विराइया वि' न्तिदेल्ला* ॥११७॥ द* नदन्ते ज्ञान वर्★ धनवागदलिह । विनय विधा 'णिस्सन्ग' ॥ णणियतद 'णीराया वि कुराया गणहर' मुनि 'देवापसीयन्तु विमलाम् * ॥११८॥ णा* शव दागद मातिनव* झुरि । राशिय कलिसुत अमल ॥ ईशनु जिनपु* अनु श्रुतद आवरणव । लेसिनिम् केडिसुवदेनुम् आ * णा शव माडद सर्वाणी* योगद । राशियनेल्लव तन्दु ॥ ईशर सरणिय हन्एडनगद । राशिय श्रुतदवतारद्* व*रदवागिहदि व्य*यशदमहर्षिगळ् । परम रसायन घन* ॥ धरसेनगुणधरयतिव्रुषभादिगळ् । विरचिसदुदनेल्ल बेरेसइ * र*मणीयवाद अन्कस्*यदे 'पणमामि' | सम्पुप्फयन्तम्दुकव * ॥ शम ' यन्तम्दुण्णयन्धु' कहरसुवि' यार' । दम' रविम् भग्ग सविमग्ग' क्रमभ* णीच गोत्रव गेल्दय* शदे 'कन्टयमिसि' । ऊच 'समिइवइन्' वन हे ।। ऊचाति ऊच 'त्रोद्दन्तम् पणमह' । चीन्द्र 'कय भूय' खवग* य* शदन्कदोळुव रस* 'बलिम् भूयबलिम्' । वशवा 'केसवासप' नडु ॥ सश्री 'रि भूयबलिम् विणिहय वम्म' । वश 'हपसरम्वड्ढा' व* म्*ञ्गलदतिशय सुदि*न् ‘वियविमल' । दिगद 'णाण गुम्मड' न।। म* ञ्गल 'पाहुड' पसरम् ति आ मेले । इङ्गिद श्रुतदवतारन्* त्*नु 'ऐत्थ सम्प्प' व्*वर 'इ धवलिय' दिनु 'तिहुवण भवणा प' ॥ जिन* "सिद्ध माहप्पा पाहुड सुत्ताण' । जिन 'मिमा भूवलया' * त्*म 'सणियाटिका' सुय* शनुकुमुदेन्दु । विमलभूवलयदसिरिस उ ।। त्तम रचिसुव करम मार्गद अवतार । विमल श्रुतावतारवे द* ॥ थ* रथरवाद पाहुडगी वाणादि । वरद भूवलयनामदलि । गुरुउ सहाचार्य परिपूरणवागिसे । गुरु वीरसेन सम्मत उ* सु* रनरतिरयञ चहिरिय मानवरेल्ल । सरुवान्कदनुभव *वरु । विरचिसिदवरात्म समवसरणदन्ग । परमात्म महावीर् म्उरुघ्* ॥ १७१ ॥ ॥ १७२॥ ॥ २१५ ॥ २१६ ॥ ॥२१७॥ ॥२१८॥

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