Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan

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Page 476
________________ (सिरि भूवलय) ही महत्वपूर्ण है । आज के गणक यंत्र तभी सातवीं सदी में ही थे ऐसा साक्ष्याधार ही सिरिभूवलय है जगत की सर्वशांति के लिए यह ग्रंथ उपयोगी सिद्ध हो ऐसी शुभकामनाओं के साथ ला इलाही इल्लल्लाह मोहम्मदर्तसूलुल्लाह १२. डॉ. सूर्यदेव शर्माजी, सं, आर्य माण्ड, अजमेर ___मैं पाठकों के सम्मुख एक अद्भुत ग्रंथ के संक्षिप्त विवरण को देने की इच्छा रखता हूँ। इस ग्रंथ के समान और किसी ग्रंथ को मैंने अपने जीवन में न तो देखा है और न ही सुना है। इस ग्रंथ में अनेक स्थान पर ऋगवेद की प्रशंसा में दिए गए विश्लेषण को मैं एक श्लोक के रूप में कहता हूँ - अनादिनिधनां वाक दिव्य ईश्वरीयं वचः ऋगवेदोहि भूवलयः सर्वज्ञानमयो हि आः।। इसके द्वारा महर्षि दयानंद तथा आर्यसमाज के वेदों के अपौरुषेयते सिद्धांत कितनी सुन्दरता के साथ स्पष्ट होते हैं । अंकों को ऊपर से नीचे की ओर पढते जाए तो संस्कृत श्लोकों की उत्पत्ति होती है इसे मैंने स्वयं देखा है। १३. भास्करपंत सुब्बनरसिंह शास्त्री भूवलय में निहित प्राचीन भारत का दिव्यज्ञान सारी दुनिया के लिए एक सवाल है। कुमुदेन्दु मुनि ने इस महा ग्रंथ को गणित पद्धति में रचा है। १४. वीरकेसरी सीताराम शास्त्री जी वेदों का सर्व प्रमाण भूवलय में दिखाई देता है १५. तिरुमले ताताचार्य शर्मा जी कर्ता और ग्रंथ के विषय में किए गए टिप्पणी के कुछ भाग ३५-४० वर्ष पूर्व विश्व कर्नाटक के कार्यालय में एक यंत्रगल (साँचा)लाकर आप शिलालेखों को देखने में निपुण हैं इसका रहस्य क्या है ज्ञात नहीं हुआ कृपा करके इसे कोंच(थोडा) देखें ऐसा कह कर हाथ में थमाया। उसको पत्रिका के साहित्य संचिका के -473

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