Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan

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Page 471
________________ (सिरि भूवलय भगवद्गीतात्मक रूप में कुमुदेंद् मंगल मुनि द्वारा कही गई प्रत्यक्ष विश्वरूपी गणित सिद्धांत साहित्य है । इसमें ६ लाख कन्नड श्लोक, उससे संस्कृत प्राकृत आदि देव मानव मग पैशाचिक भाषादियों में करोडों गद्य पद्य श्लोक उत्पन्न होते हैं । यह विश्वविख्यात अप्रतिम महाग्रंथ में सिद्धांत आयुर्वेद एक लाख श्लोकों से वर्णत हाता है। सरस विद्येगळोळु कामनद कलेयोळु। हरुषदायुर्वेददोळु लरयद अपुनरुक्ताक्षरदंकद । सरस सौनदरी देवियोडने ॥ मनविटू कलितवनाद कारणादिन्दा । मनुमथनेनिसिदे देवा ।। शरणसदे सौनदरीयरीतकगननेय घन क्वेि इरुव भूवलय ।। अर्थात सरस विद्या में काम कलाओं में हर्षयुर्वेद में अक्षरांक के सरस में मन से सीखने के कारण यह भूवलय काव्य एक घन विद्या है। ___यह सरसविद्या से भरी काम कला की विधि विधानों को प्रप्रथम, कृत युग में आदिवृषभ देव जी के पुत्र गोम्मटदेव और उनके सहोदरी सौंदरी भी गणित सिद्धांत द्वारा अपने पिताजी से उपदेश प्राप्त किया । उसको गोम्मट देव ने मन से सीखने के कारण मन्मथ हो गए । केवल ९ संख्या से सकल शास्त्रों को सीखा। आज सामान्य मनुष्य के द्वारा काम की कला को समझते ही देह क्षीण होने लगता है। इस प्रकार देह क्षीण न हो, यौवन स्थिर हो, मन्मथत्व भी संपूर्ण विकसित हो तभी आयुष्यवृद्धि होने की काम कला प्रसन्न होकर प्रवर्धमान होगा । इस काम कला के आयुर्वेद का क्रम सामान्य समाज का क्रम नहीं है वह रीत अलग ही है। जाति जरामरणावनु गुणाकार । दातिथय बरे भागहार ।। ख्यातिय भंगदोळरियं विख्यात । पूतवु पुण्यभूवलय ।। सागरद्वीपगळेल्लव गणिसुव । श्री गुरु ऐदवरंक । नागव नाकव नरकव मोक्षन । साघनवागिसिदंक । अर्थात: यह सिरि भूवलय काव्य पवित्र काव्य है क्योंकि जाति, जरा(बुढापा)-मृत्यु से भी ऊपर गुणाकार भागकार से मिला है और नाकव अर्थात स्वर्ग, नरक, मोक्ष आदि विषयों को घन अंकों में ही विवरित किया गया है। 468

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