Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan
View full book text
________________
(सिरि भूवलय)
॥१८३।। ॥१८४॥ ॥१८५॥
कोपवळिद सिम्ह मुखगळ् ॥१६६।। तापप्रतापद्अहिम्से
॥१६७।। रूपदोळ् शौर्य प्रसिद्धि ।।१६८॥ व्यापित भव्याब्जहदय ॥१६९॥ भूपरनेरगिप शक्ति
॥१७०॥ श्री पद्धतिय पाहुडवु ।।१७१।। आ पाहुडवे प्रातवु ॥१७२॥ रूपस्थ वीररासनवु
॥१७३॥ श्री पद्धतियादि भन्ग ॥१७४॥ रूपनेल्लरिगे तोरुवदु ॥१७५॥ श्री पददन्ग तोरुवदु
॥१७६॥ दीपद ज्योतियाद्यन्क
।।२७७॥ यापनीयर ॥१७८॥ कापाडुवदु शान्तियनु
॥१७९।। रूपावागिबहुदु भारतिगे
।।१८०॥ श्री पदवलय भूवलय ॥१८१।। रूप्यके बहुदु भारतदि ॥१८२॥ हषद स्फटिकद सिम्हासन प्रतिहार्य । सरि मुन्दे देवर ग*णवु ॥ निरुतवु कयमुगिदिह पपुल्लित मुख । सरसिजदिन्द सुत्निहरु
ओडुत बन्निरिदर्शनमान्नुअ । हाडो इदेम्ब दुन्दुभिण* ॥ पाडिन गम्भीर नादविहुदु मुन्दे । नाडिन हूगळ मळेयु दिवदिन्द बीवुदु वर सूर्यशोभेय । सविय भामन्डल बन् ध* ॥ नव पूर्णचन्द्र अथवा शन्खदन्तिह । सविय् अरत्नाल् चामरवु
नवसवर ह्रस्वदीर्घप्लुत ॥१८६॥ अवर वर्णगळ् इप्पत्ऐदु ॥१८७॥ सवियह वेन्टु व्यन्जनवु ॥१८८।। सव्अम् अह क्ह पह योगवाह ॥१८९।। विवरवदेन्तेम्ब शन्के
॥१९०॥ अवतारदुत्तरविन्तु ।
॥१९॥ नवस्वरवर्णव्यन्जनद ॥१९२॥ विवरद् योगवाहगळिम्
॥१९३।। सविय्ीमदु अक्षचामरवुम् ॥१९४।। अवुगळु अरवत्नालुकु
॥१९५।। अवनेल्ल कूडलु ओमदु ॥१९६।। इवु अष्ट महापातिहार्य ॥१९७।। नवम बन्धद मन्गलद ॥१९८॥ विवर मन्गलद प्रातवु ।।१९९।। कविगे मन्गलद् आदि वस्तु ॥२००।। शिव चन्द्रप्रभ जिनरन्क ॥२०१॥ नवमान्क सिद्ध सिद्धान्त ॥२०२॥ अवतार कामदवहुदु
॥२०३।। शिव सख्य रससिद्ध काव्य ॥२०४।। सवणर्गे अवत्तनाल्कु
।।२०५॥ नवकारमनगल ग्रन्थ
॥२०६॥ भवहर सिद्ध भूवलय ॥२०७।। नव मन्मथरादियन्क
॥२०८॥ नव ब्राम्हि लिपिय भूवलय ॥२०९।। तस लोकनालियोळडगिह भव्यर । वशगोन्ड सम्यक्तवद र स || यशकाय कल्पद रससिद्धि हुगळ । कुसुम मन्गलद पर्याय समतेयोळकरदन्कव तोरुव । गमकद शुभ भद्अ वरदे* ॥ क्रमव सक्रमगेयद चन्द्रप्रभ जिन । नमिसुव भक्तर पोरेयो णाशवागदलिह अक्षरान्कवनित्तु । आ सिद्ध पदविगेरिसु वा* || राशियन्कवनु ओमबत्तरोळ् कट्टि । दाशेय पाहुड ग्रन्थ लीलान्क ओम्बत्उ ओमदु सोन्ने एन्टागे। मालेयल्अन्तरह *रुष।।दोलेयोळ्ओमदु मूरोमदु मूरोमदुमाबाळु 'उ' काव्यभू(मिरय)वलय
उ ८०१९+अन्तर १३१३१=२११५०=९ अथवा अ-उ १०,५५,८८+२११५०=१,२६,७३८
।।२१०।।
॥२११।। ||२१२।। ॥२१३।।
341

Page Navigation
1 ... 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504