Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan

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Page 421
________________ सिरि भूवलय विवेचन तक कर चुके थे । इस पर भी विश्वास करना कठिन है कि क्षय और महोदर जैसे रोगों की प्रभाव शाली चिकित्सा विधि हमारे पूर्वजों को ज्ञात थी। परन्तु जब हम अंग्रेजी बिल्कुल न जानने वाले शास्त्री जी के मुहं से कुछ ऐसी बातें सुनते हैं जो नवीनतम वैज्ञानिक सिद्धांत से मिलती-जुलती हैं तो आश्चर्य होता है कि उनके दावे पर अविश्वास कैसे किया जाए। उदाहरणतः अजीव विज्ञान भौतिक जगत का विवेचन करते हुए कहता है कि परमाणु उसका लघुतम अंश है और चूंकि परमाणु शून्य ज्योति कणों से बना है जिनका कोई वास्तविक परिमाण नहीं है इस कारण वृहत से वृहत का भी वास्तविक परिमाण नहीं हो सकता । यह सिद्धांत जहां दर्शन के क्षेत्र में शंकराचार्य के माया वाद से मिलता है वहां भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में नवीनतम परमाणु वाद से मिलता है । प्रोफेसर जेम्स जीन्स का यह कथन कि सारा विश्व एक गणित भूत महा मस्तिष्क की कल्पना मात्र है भूवलय में प्रतिपादित उपरोक्त सिद्धांत का ही विकास प्रतीत होता है है न? शास्त्रीजी कहते हैं कि यदि विभिन्न भाषाओं और विज्ञानों में पारंगत लोग उपरोक्त दोनों ग्रंथों के अनुसंधान और प्रकाशन में उनकी सहायता करें तो भारत को एवं विश्व को एक अमूल्य निधि प्राप्त हो सकती है। भारत सरकार का शिक्षा-सचिवालय एवं भारत के विश्वविद्यालय इस बात पर सहानुभूति पूर्वक विचार करें तो निश्चय ही देश का हित हो सकता है, यह मेरा विश्वास है । __कुछ मराठी के समाचार पत्रों में भी इस ग्रंथ के विषय में लेख प्रकाशित हुए जैसे प्रगति आणि जिनविजय (बेलगांव सोमवार तारीख ७ जनवरी १९५२ जैन ज्योति १६ जनवरी १९५२ दैनिक सुदर्शन कोल्हापूर तारीख ३ फरवरी १९५२ सकळ-पुणे सनिवार तारीख ९ फरवरी १९५२ प्रगति आणि जिनविजय सोमवार तारीख २५ फरवरी १९५२ =418

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