Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan

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Page 462
________________ सिरि भूवलय दामिली नाम पडा होगा। चाणक्य लिपि कुटिल लिपि होने के कारण अर्थशास्त्र में उक्त गूढ लिपि, गुप्त के समय की कुटिल लिपि रही होगी। हम्मीर, नवीं सदी जितनी प्राचीन है क्या? ऐसा एक संदेह होता है । ग्यारहवीं - बारहवीं सदी में राजपुत्रवंश के इतिहास में हंबीर, हम्मीर, पहले से प्रचलित अम्मीर शब्द के रूप होंगें । जयसिंह सूरी के हम्मीरमदमर्धन काव्य ( Gaekwar Or. Sr. No. 10 ) नयनचंद्र सूरी के हम्मीर महा काव्य (I.A.VIII, P.55TR, kirtane) राजपुत्र इतिहास के लिए संबंधित है (Ojha. History of Rajputana) । कन्नड में हम्मीर काव्य अथवा राजेन्द्र विजय नाम के चंपूग्रंथ देशिकेन्द्र से सु १५६० में रचित हुआ। यह पट्टद कल्लिन (स्थान का नाम ) राजा हम्मीर का इतिहास है कहा गया है। क.क.च. पृ २९०। यदि कुमुदेन्दु के कहे जैन ग्रंथों का परिशीलन किया जाए तो, दिगंबर पंथ को मानने वाले दिट्टिवाद नाम का बारहवाँ अंग मात्र ही शेष बचा है शेष ग्यारह न हो गए हैं ऐसा, श्वेतांबर ग्यारह अंग शेष बच कर दिट्टिवाद लुप्त हो गया है ऐसा कहते हैं । श्वेतांब के ग्यारह अंगों को दिगबंर प्रमाणग्रंथ के रूप में अंगीकार नहीं करते हैं। परन्तु याकोबी आदि दिखाए गए आचारांग सूत्रकृतांग आदि ई.पू. तीसरी सदी में ही प्रचलित थे ऐसा जान पडता है। कुमुदेन्दु दिगंबर मुनि होने पर भी ग्यारह अंगोम को कहते हैं। जैनागमों को तीन रीति से विभक्त करने का संप्रदाय है। (१) दृष्टि वाद अंग को छोड कर ४५ (११ अंग,१२उपांग, १० पइन्न, ६ छेदसूत्र, २ नंदी तथा अनुयोगद्वारस्तु, ४ मूलसूत्र ) अथवा (२) अंग अंगप्रवि तथा अंगबाहिर । अंग प्रवि में १२ अंग अथवा गणिपिडग; अंगबाहिर में ६ प्रकार के आवश्यक, कलिय उत्कलिय आदि भेदों के साथ आवश्यनिर्युक्ति; (३) ८४ आगम (११ अंग, १२ उपांग, ५ छेद सूत्र, २ मूल सूत्र, ३० पइन्न २ चूलियसूत्र, ८ अन्य सूत्र कल्प, १० निज्जुत्ति, ३ (पिण्डनिज्जुत्ति संसक्तनिज्जुत्ति विसेनावस्सयभास) कुल ८४ आगम । इन पर व्याख्यानों को निज्जुत्ति भास, चुण्णि, टीका, आदि प्रकारों में विभक्त किया गया है। बारहवें अध्याय में कुमुदेन्दु ने आगमों को कहा है (अ.१२.४७) १. द्वादशांग, २ . चतुर्दशपूर्व, ३. प्रतिक्रमण शास्त्र, ४. परीक्षित, ५. मतिज्ञान, ६. पर्यायाक्षर, ७.पदसंघात, ८.प्रतिपत्यंगधर, ९. अनुयोगश्रुत, १०. प्राभृतक, ११. प्राभृतकांग, १२.१० पूर्व, १३.जीवसमास, १४. आचार, १५. सूत्रकृत, १६. स्थान, १७. समवाय, १८. व्याख्याप्रज्ञप्ति, १९.ज्ञातरूपकथा, २०. उपासकाध्ययन, २१. अंतकृद्दशा, २२. अनुत्तरोपपाद दशा, 459

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