Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan

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Page 465
________________ सिरि भूवलय नहीं है। इसी नाम से अन्य लोगों ने भी ग्रंथ रचना की है । मेघचंद्र के शिष्य वीरणंदे भी सन् १९५३ में एक ही चारित्रसार रचना की है। सु. सन् १४०० में चंद्र कीर्ति ने परमागमसार की रचना की । कुमदेन्दु के कहे कविजिह्वाबंधन के लिए भी पंद्रहवीं सदी के ईश्वर कवि के कन्नड छंदोग्रंथ का उसी नाम के ग्रंथ से कोई भी संबंध दिखाई नहीं देता । शिवकोटि के वड्डाराधने से ही उद्धृत वाक्य भूवलय में हैं ऐसा निसंशय रूप से कहना संभव नहीं है। कुमुदेन्दु शतक को पिरियापट्टण के देवप्पा ने रचा है इस कारण से उन्हें भूवलय का परिचय रहा होगा ऐसा कहा गया है । परन्तु इस कुमुदेन्दु शतक में दोड्डैय्या के संस्कृत भुजबलि चरिते (इतिहास) और अन्य ग्रंथों से श्लोकों को लेकर अन्य जैनाचार्यों के नाम आने पर कुमुदेन्दु नाम को जोड कर रचित शतक ( ? ) होने के कारण भूवलय के समय को निर्धारित करने में इससे कोई सहायता नहीं मिलेगी । कुमुदेन्दु आत्म कथा को कहते समय मान्यखेट के अमोघ, सैगोट्ट सिव, उनकी रानियाँ जक्कि लक्कि, ऐसे केवल दो ही राजाओं का नाम कहते हैं और कल्बप्पु तिप्पूरु यलवभू नन्दि अद्याळ पेनुगोण्डे गजदन्त पोन्नूरु मले उच्चंगी मैदाळ कैदाळ मलेयूरु सगोट्ट सिवनूरु कुंदापुर वन्दवासि मानूल तिरुमले सिद्धापुर कोत्तळ 462 कुसुमदपुर गेरोसोप्पे सागर नीलगिरि कोंगुणि द्रमिळ जन विष्णु तवरूरु तिरुप्पळनूरु तिरुक्कुरुळ कोंडूं चित्तामूरु मिनाक्षिय कोविल कामाक्षियक्षिय दानांकसाले आदि जैन क्षेत्रों के नामों का उल्लेख करते हैं । इनमें पेनुगोण्डे और गेरुसोप्पे होय्सळ-विजयनगर समय में प्रख्यात हुए थे। उससे पहले के शासन में दिखाई नहीं पड़ते। मान्यखेट को अमोघवर्ष ने ही निर्मित कर अपनी राजधानी बनाई उससे पहले

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