Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 448
________________ - सिरि भूवलय सूत्र रूप में रचा । पुष्पदत ने १७७ सूत्रों को भूतबलि ने शेष सूत्रों को रचा । नंदीसंघ के प्राकृत सूची में आचार्यों के समय को सूचित करने के साथ-साथ, धरसेन गुणधर पुष्पदंत भूतबलि आदि नामों को शामिल कर, वीरनिर्वाण शक ९१४-९८७ में रहे होंगें कहा गया है । बृहटिप्पणिका नाम के ग्रंथ के अनुसार वीरशक ६००० में धरसेन ने जोडी पाहुड को रचा था । पुष्पदंत तथा भूतबलि के सूत्र प्रथम अर्धमागधी में रचे गए थे । पश्चात सौराष्ट्री और महाराष्ट्री प्राकृत रूप में परिवर्तित हुए ऐसा माना गया है। वीरसेन के धवळ में बारह अंग के दिट्ठिवाद में और सूत्रों में समाहित भागों का निर्देश है। दिट्ठिवाद के पाँच भागों में से चौथे भाग को पूर्वगत कहा गया है। उसमें चौदह विभागों हैं जिसमें दूसरे विभाग का अग्रायणीयपूर्व नाम था। इस अग्रायणीयपूर्व में पुनः चौदह विभागों में पाँचवें विभाग का नाम था चयनलब्धि । उसमें २० पाहुडों में चौथे पाहुड का नाम कम्मपयडि (कर्मप्रकृति) था। इस कम्मपयडी पाहुड के २४ विषय भी सूत्रों में समाहित थे । केवल एक लघु भाग मात्र वियाह पन्नत्ति का अनुसरण करता हुआ था। (jaina Antiquary volVI) वीर सेन ने इन सूत्रों को षटखंड सिध्दांत कह कर संबोधित किया है। षटखंडागम नाम अनंतर में आया होगा ऐसा जान पड़ता है। जीवठ्ठाण, खुद्दाबंध, बंधसामित्त विचय, वेदणा, वग्गणा, महाबंध आदि नाम के छह खंडों में प्रथम पाँच खंड ६००० सूत्रों में समाहित होकर वीरसेन ने ७२०००ग्रंथ परिमित का धवल नाम के व्याख्यान को लिखा । अंतिम महाबंध के लिए भूतबलि ने ही ३० अथवा चालीस हजार ग्रंथ व्याख्यान लिखा होगा और उसका नाम महाधवल रखा होगा इसी कारण से आपने (वीरसेन) पुनः व्याख्यान नहीं लिखा ऐसा वीरसेन ने कहा । भूतबलि के यह महा बंध (महाधवल) के अनुसार ठिठदि, अणुभाग, प्रदेश, (प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेश) आदि नामों के चार विधानों का निरूपण करता है ऐसा वीरसेन ने अपने धवलटीका में कहा है। धरसेन के सहपाठी गुणधर ने दिठवाद के एक और भाग को संरक्षित किया । चौदह पूणे में पाँचवाँ है ज्ञानप्रदवाद । उसके बारह वस्तुओं में दसवेण वस्तु में २० पाहुड हैं । उसमे से तीसरे पाहुड पेज्जदोसपाहुड को गुणधर ने १८० गाथाओं में रच कर कषायपाहुड नाम दिया। इस कषायपाहुड के लिए यतिवृषभ ने चूर्णिसूत्र को रचा । इस कषाय पाहुड के लिए वोछामि सत्तकम्मे पंचिय रूपण विवरणं समहत्थिं ऐसे आरंभ होने वाला एक प्राकृत पंचिके है । तुंबलूराचार्य के चूडामणि कन्नड में है ऐसा मानने

Loading...

Page Navigation
1 ... 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504