Book Title: Siri Bhuvalay Part 01
Author(s): Swarna Jyoti
Publisher: Pustak Shakti Prakashan

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Page 427
________________ से प्रारंभ होकर शून्य मे ही अंत होता है। "0" शून्य क्या है ? इस बात को सिरिभूवलय में गणित, वैज्ञानिक, खगोलशास्त्र, पारमार्थिक दृष्टि आदि अर्थ की उनकी शक्ति भक्ति और शान के अनुसार प्रसारित हुआ है। आधुनिक खगोल शस से प्रचारित विश्व (Universe) का जन्म (Big Bang theory of origin of Universe), दो शून्यों के बीच टकराव से उदभूत विधुत वेग में फैलता जाता है। इस पर हम विश्वास रखेंगें तो यह बात सिरिभूवलय में हजारों साल पहले ही कही हुई है। ९. सिरिभूवलय में बताया है लिख भी सकेंगें पढ़ाकर सुना भी सकेंगें। दशामिक अक्षर लिपि - फिर भी उसे ही लिख नही पायेंगे, लिखने पर पढ़ नहीं सकेंगें पहने पर भी सिध्द सिध्दांत भूवलय... इस लिपि को देव, मानव और पशु पक्षीयों की एक भाषा है। इस प्रकार नीचे दिये गये पंक्तियों में कहा गया है। कुमुदेंदु आचार्यजी का आशीर्वचन है- "दिविजराडुव रुक्कु धनुजराडुव रुक्कु दनद गोब्रामणेभ्यः शुभमस्तु” १०. भूवलय में आनेवाले आंक से तसम 64 ध्वनियों को अक्षर बनाकर एकेक चौकोर को विशिष्ट रीति से पढने से कन्नड पध काव्य उत्पन्न होता है । इसी पंक्ति के प्रथम अक्षरों को ऊपर से नीचे तक पढने से स्तंभ काव्य में प्राकृत है पांक्ति के मध्य अक्षर को (27 वां अक्षर) ऊपर नीचे तक पढने से स्तंभ काव्य में संस्कृत आता है। प्रथम अध्याय में तीन भाषाएं कन्नड, प्राक्रत और संस्कृत आती है। उसी तरह पृष्ठ संख्या 82 में द्वितीय खंड शैतावतार में सब पाक्तयां कन्नड पथ है और इसमे स्तंभ काव्य में प्रथम अक्षर के नीचे प्राकृत 9 वे अक्षर के नीचे संस्कृत, 27 वे अक्षर के नीचे तेलुगु और अंत के अक्षर के नीचे तामिल (तिरुक्कुरळ) मिलाकर पांच भाषाएं आती है। सिरिभूवलय काव्य के पथ्य रूप में कुछ ." इस प्रकार के चिन्ह है । इस चिन्ह के अंदर से अक्षर पढने से गध हो जाता है। आयुर्वेद, विज्ञान, ज्योतिष, अणुशास्त्र कामशास्त्र विषय इस गध्य रूप में आते है। भूवलय अध्याय के अंत तक अंतर पध्य को देख सकते है । इस अंतर पध्य का प्रथामक्षर, अंतिमक्षर और अंतिम अक्षर पिछले अक्षरों को कुछ सक्रमवर्ति से पढेंगे कुछ अक्रमवर्ति से पढेंगे तो रामायण, महाभारत के काव्यो को पा सकते है। भूवलय में और भी विशीष्ट है। ऐसे पुरातन ग्रंथ जो अब तक उपलब्ध नहीं है, उन्हें स्वर्गीय पंडित गप्पा शास्त्री जी ने खोज कर दिखाया है। सिरिभूवलय यह एकैक्य ग्रंथ है, क्योंकि इस ग्रंथ कि तुलना, सारे विश्व में किसी और ग्रंथ के साथ नहीं की जा सकती। इस ग्रंथ के प्रथम और द्वितीय भाग स्वर्गीय पंडित यल्लप्पाजी ने 1953 में प्रकाशित किया। अब तृतीय भाग की छपाई होनी चाहिये। ग्रंथ के प्रथम और दितीय भाग की कुछ प्रतिया मेरे पास है । अगर आमजनता चाहे तो 1.2, और 3 भाग एक साथ सरल और सुबोध रूप से मुद्रित कर सकता हूं, यह मेरा अटल विश्वास है । जैसी जनता की इच्छा हो ऐसा लिया जा सकता है। "सिरि भूवलय के बारे में एक विज्ञापन" सिरि भूवलय जैनों का विश्वकोश है। यह सारे विश्व को आश्चर्य चकित करनेवाला सर्वभाषापूर्ण सर्वधर्मपूर्ण और सर्वकालिन अपूर्व ग्रंथ है । यह सब ग्रंथों के सार सच्चों को अपने आप में समाकर, अनेक श्रेणीयों में बंधे गणित और गतियों में मिलकर 18 मुख्य भाषायों, 700 उपभाषाएँ अपने अंकाक्षर माध्यम से बंधा हुआ एक महान और अपूर्व ग्रंथ है। इस ग्रंथ से चुने हुए भागों को देखने से अनेक भाषाएं, धर्म, कला, आयुर्वेद, गणित विज्ञान, साहित्य इत्यादि अपने आप में ही एक वैशिष्ट को प्रदार्शित करते है। इन सब को इकठ्ठा करके आमजनता के सामने रखने का कार्य हमारा है। आगे के अनुसंधान कार्य को बहुत समय, कार्य और धन की आवश्यकता है। यह कार्य पिछले 40 वर्षो से स्तगित है। अगर आगे भी इसी तरह स्थगित रह गया तो यह अनमोल ग्रंथ काल में विलिन हो जायेगा। विध्वानों का अभिप्राय है, कि इस ग्रंथ की संपूर्ण सुरक्षा और अनुसंधान अति अवश्यक है। अब मेरे स्वर्गीय पिनाजी का 1940 में संपादिता, अहिंसायुर्वेद संध का रिपोर्ट है। इसके सिवा, कई आदरणीय व्याक्तियों की ध्वनिमुद्रित सिरिभूवलय के बारेमें अभिप्रित टेप है। स्वर्गीय पंडित एवप्पाजी के हस्तलिखित 60 बड़े चौकार, प्रदर्शन के मानचित्र (नक्शा, रूप रेखा) दिलि के (National Archives) न्याशनल आरकैक्स में रखे हुए (Microfilm) मैक्रोफिल्म के (Positives) पासिटिव और अब तक मुद्रि किया गया सिरिभूवलय का तीसरा भाग, मेरे पास है, और प्राकृत ग्रंथों का कन्नड अनुवादित हस्तलिपित पन्ने प्रकृत ग्रंथ मेरे पास है। इन सब को एक निर्णयित रूप में लाना ही हमारा अगला कार्य है । १. अब मुद्रण के लिये सिध्द हुआ 1,2 और तृतीय भागों का प्रति एक ग्रंथ का मूल्य 1,000/- इस धनराशि को (advance) के रूप में स्वीकार लिया जा सकता है। D. D. अथवा रोकड के रुप में श्री. एस. वायू. धर्मपाल के नाम पर भेज सकते है । २. इस विश्व विरव्यान ग्रंथ को 10,000 रू और उसके ऊपर दात या चंदा देने वालों का फोटो, पंडित एल्लप्पा शस्त्री के जीवन परिचय में उनका फोटो छपवाया जायेंगा। Translated by Smt. Usha Tukol Ph.D. ➖➖➖ 424 एम. वाय. धर्मपाल (दि. पंडित यल्लप्प शास्त्री के पुत्र)

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