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सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
ब. जगत्प्रसिद्ध बोधस्य, वृषभस्येव निस्तुषाः । बोधयंति सतां बुद्धिं सिद्धसेनस्य सूक्तयः ।।
-हरिवंशपुराण (जिनसेन) , ३० । स सिद्धसेनोऽभय भीमसेनको गुरु परौ तो जिनशांतिषेणको।
- वही, ६.६/२९। स. प्रवादिकरियूथानां केसरी नयकेसरः ।
सिद्धसेन कवि याद्विकल्पनखराङ्कुरः।। - आदिपुराण (जिनसेन) १/४२। आसीदिन्द्रगुरुर्दिवाकरयतिः शिष्योऽस्य चाहन्मुनिः । तस्माल्लक्ष्मणसेन सन्मुनिरदः शिष्यो रविस्तु स्मृतः ।।
. - पद्मचरित (रविषेण) १२१ १६७। ज्ञातव्य है कि हरिवंशपुराण के अन्त में पुनाटसंघीय जिनसेन को अपनी गुरुपरम्परा में उल्लिखित सिद्धसेन तथा रविषेण द्वारा पद्मचरित के अन्त में अपनी गुरु परम्परा में उल्लिखित दिवाकर यति-ये दोनों सिद्धसेन दिवाकर से भिन्न हैं। यद्यपि हरिवंश के प्रारम्भ में तथा आदिपुराण के प्रारम्भ में पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए जिन सिद्धसेन का उल्लेख किया गया है वे सिद्धसेन
दिवाकर ही हैं। . इ. देखें- जैन साहित्य और इतिहास पर विशद् प्रकाश, जुगलकिशोर मुख्तार,
पृष्ठ ५००-५८५। फ. धवला और जयधवला में सन्मतिसूत्र की कितनी गाथायें कहाँ उदधृत हुई,
इसका विवरण पं० सुखलालजी ने सन्मतिप्रकरण की अपनी भूमिका में किया
है। देखें - सन्मतिप्रकरण 'भूमिका', पृष्ठ ५८।। ज. इसी प्रकार जटिल के वरांगचरित में भी सन्मतितर्क की अनेक गाथाएँ अपने
संस्कृत रूपान्तर में पायी जाती हैं। इसका विवरण मैंने इसी ग्रन्थ के इसी
अध्याय से वरांगचरित्र के प्रसङ्ग में किया है। 4. Siddhasenaś Nyāyāvatāra and other works, A.N. Upadhye. Jaina
Sahitya Vikas Mandal, Bombay, 'Introduction' pp. XIV-XVII यापनीय और उनका साहित्य - डॉ० कुसुमपटोरिया, वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट
प्रकाशन, वाराणसी-१९८८, पृ० १४३/१४८। ६. देखें- जैनसाहित्य और इतिहास पर विशद् प्रकाश, पं० जुगल किशोर
मुख्तार, पृष्ठ ५८०-५८२।
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