Book Title: Siddhsen Diwakar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ सिद्धसेन दिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व स्वपरप्रकाशक बाधारहित ज्ञान को ही प्रमाण की संज्ञा दी है एवं प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से इसके दो भेद किए हैं। दूसरी से चौथी कारिका में-- प्रत्यक्ष व परोक्ष के लक्षण, ५वीं में अनुमान की परिभाषा एवं अभ्रान्तपद से उसका निर्वचन, छठी-सातवीं में प्रत्यक्ष भ्रान्त है— योगाचारवादी मत का खण्डन, ८ से ९ वीं कारिका में शब्द प्रमाण का लक्षण, १० से १३वीं में परार्थानुमान एवं पारमार्थिक प्रत्यक्ष का सामान्य लक्षण, १४ से १६वीं में पक्ष का लक्षण, १७वीं कारिका में द्विविध हेतु, १८ से २० वीं कारिका में साधर्म्य वैधर्म्य का लक्षण, २१वीं में वैधर्म्यदृष्टान्त दोष, २६वीं कारिका में दूषण एवं दूषणाभास का लक्षण, २७वीं में पारमार्थिक प्रत्यक्ष का निरूपण, २८वीं में प्रमाणफल, २९वीं में नयवाद, ३०वीं में स्याद्वाद, ३१वीं कारिका में प्रमाता का निरूपण करते हुए अन्तिम ३२वीं कारिका में प्रमाणादि व्यवस्था के अनादि तत्त्व का ख्यापन किया गया है। रचनाकार ४: ७२ सामान्यतया सिद्धसेन दिवाकर को न्यायावतार का कर्ता माना जाता है । किन्तु न्यायावतार की रचनाशैली एवं विषयवस्तु के आधार पर अनेक विद्वानों ने इसे सिद्धसेन की कृति मानने में आपत्ति जाहिर की है। न्यायावतार के कर्ता के सम्बन्ध में हमें मुख्य रूप से तीन अवधारणाएँ मिलती हैं। पहली अवधारणा को मानने वाले वे विद्वान् हैं जो परम्परा के अनुसार सिद्धसेन दिवाकर को ही न्यायावतार का कर्ता मानते हैं। इनमें पं० सुखलाल संघवी, ६७ पं० बेचरदास दोशी, पं० दलसुख मालवणिया, ६८ डॉ० हीरालाल जैन, ६९ पं० नाथूराम प्रेमी, ७० पी० एन० दवे आदि हैं। दूसरी अवधारणा के प्रतिनिधि श्री सतीशचन्द विद्याभूषण, ७१ हर्मन जैकोबी,' पी० एल० वैद्य, ७३ प्रो०ए० एन० उपाध्ये०४ आदि हैं जो सिद्धसेन दिवाकर को न्यायावतार का कर्ता तो मानते हैं किन्तु उन्हें छठी या सातवीं शताब्दी में रखते हैं। तीसरी अवधारणा को मानने वाले पं० जुगल किशोर मुख्तार, ७५ पं० कैलाशचन्द शास्त्री, ७६ पं० दरबारी लाल कोठिया एवं डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री " प्रभृत विद्वान् हैं, जो न्यायावतार को किसी जुदा परवर्ती सिद्धसेन की कृति मानते हैं । सिद्धसेन की समय सीमा पाँचवीं शताब्दी से आगे नहीं ले जाई जा सकती इसे हम इसी लेख के प्रथम भाग अर्थात् उनके जीवन-वृत्तान्त के सन्दर्भ में सिद्ध कर चुके हैं। यहाँ हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि न्यायावतार सिद्धसेन दिवाकर की कृति है या नहीं । न्यायावतार, सिद्धसेन दिवाकर की कृति है, इस विषय में प्रथम उल्लेख करने वाले आचार्य शान्तिसूरि (शांत्याचार्य ११ वीं शती) हैं जिन्होंने न्यायावतारवार्तिक वृत्ति लिखी है। इसके पूर्ववर्ती रचनाओं यथा— आचार्य समन्तभद्रकृति (छठीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114