Book Title: Siddhsen Diwakar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Shreeprakash Pandey
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 92
________________ सिद्धसेन दिवाकर की कृतियाँ स्तुति सुनाते हुए आदरभाव से देवता को नमन किया। कल्याणमन्दिर नामक इस स्तोत्र के ग्यारहवें स्तोत्र को उच्चारित करते ही धरणेन्द्र नाम का देव उपस्थित हुआ, जिसके प्रभाव से धुआँ निकलने लगा। तत्पश्चात् उसमें अग्नि की ज्वाला निकली और अन्त में पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट हुई । १३१ इस सन्दर्भ में अवधेय है कि विविधतीर्थकल्प, कथावली, प्रबन्धचिन्तामणि, पुरातनप्रबन्धसंग्रह और सम्यक्त्वसप्ततिकाटीका के अनुसार सिद्धसेन ने उस अवसर पर अपनी विख्यात द्वात्रिंशिकाओं का पाठ किया, जबकि प्रभावकचरित, प्रबन्धकोश, एवं विक्रमचरित के अनुसार सिद्धसेन ने कल्याणमन्दिरस्तोत्र एवं द्वात्रिंशिकाएँ दोनों को सुनाया। इस विरोध का परिहार करते हुए डॉ० शार्लोट क्राउज़े १३२ का मत है कि 'उपर्युक्त कुछ ग्रन्थों में पार्श्वनाथ प्रतिमा के प्रादुर्भूत होने, पार्श्वनाथ स्तुतिरूप कल्याणमन्दिरस्तोत्र के अतिरिक्त महावीर स्तुतिरूप द्वात्रिंशिकाओं का पाठ भी निमित्तभूत कथित है तो वह इस कारण से अबाधित है कि जैन रीति के अनुसार किसी भी एक तीर्थंकर की स्तुति पूजा आदि में बहुधा शेष तीर्थंकरों की आराधना भी अन्तर्भूत समझी जाती है। उक्त कविताएँ विशेषतः प्रस्तुत प्रसंग पर उचित ही ज्ञात होती हैं क्योंकि इनमें कथित तीर्थंकर स्तुति एक साथ परमात्मारूपी महादेव के प्रति भी मानी जा सकती है, जैसाकि पहली द्वात्रिंशिका के पहले पद्य के — 'स्वयंभुवं भूतसहस्रनेत्रमनेकमेकाक्षर भावलिंगम्' का स्वयंभू पद महाकालेश्वर लिंग का प्रचलित विशेषण है । १३३ ५९ ग्रन्थ परिणाम एवं भाषा-शैली कल्याणमंदिरस्तोत्र में कुल ४४ श्लोक हैं। संस्कृत में रचित इस ग्रन्थ के २३ श्लोक बसंततिलकाछन्द में हैं एवं अन्तिम ४४वाँ श्लोक आर्या छन्द में है । भक्तिमय इस स्तोत्र पर वैदिक प्रभाव भी स्पष्टतः परिलक्षित होता है। वृत्तासुर द्वारा रोकी गई गायों का मोचन इन्द्र ने किया था, इस तथ्य का संकेत स्तोत्र के ९ वें श्लोक में मिलता है । मेरुतुंगकृत भक्तामरस्तोत्र के सदृश होते हुए भी यह स्तोत्र अपनी काव्यकल्पना एवं शब्द योजना में मौलिक है । अत्यन्त सरस एवं भक्तिभावना से ओत-प्रोत इस स्तोत्र को श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों परम्पराओं में समान रूप से महत्त्व दिया गया है। टीकाएँ कल्याणमंदिरस्तोत्र पर जो टीकाएँ मिलती हैं, उनमें तपागच्छ के सोमसूरि (सं० १६०८) कृत वृत्ति, सोमकुशलगणि के शिष्य कनककुशलगणि (सं० १७६६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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